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    कौन होगा शिरोमणि अकाली दल का वारिस:लंबी चलेगी बादल और बागी गुट की लड़ाई या होगा पैचअप; राजनीतिक विशेषज्ञों से जानिए

    3 hours ago

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    पंजाब की पंथक पार्टी शिरोमणि अकाली दल सोमवार दो फाड़ हो गई। अकाल तख्त की भर्ती कमेटी ने पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को प्रधान चुना और बीबी सतवंत कौर को पंथक कमेटी का चेयरपर्सन घोषित किया है। कुछ ऐसे ही हालात 1980 में बने थे। जब अकाली दल से अलग होकर बनी पार्टी ने लोगों के बीच पहचान बनाई और अंत में कुर्सी थामे बैठे अकाली दल के खेमे को नई पार्टी में मर्ज होना पड़ा था। पंजाब राजनीति के शोधकर्ता एस. पुरुषोत्तम और सीनियर पत्रकार जसबीर सिंह पट्‌टी ने जानकारी दी कि ये हालात 1980 के दशक में भी बने थे। अकाली दल डाउनफॉल पर था। प्रधान की कुर्सी पर तब जगदेव सिंह तलवंडी थे। पार्टी में विरोधी सुर उठे और तलवंडी के इस्तीफे की मांग उठने लगी। जगदेव सिंह तलवंडी प्रधानगी छोड़ने को तैयार नहीं थे तो अलग गुट बना अकाली दल लोंगोवाल। इसकी कमान हरचरण सिंह लोंगोवाल ने संभाली। लोगोंवाल ने लोगों के बीच पकड़ बनाई और उन्हें पंजाब के लोगों का भरोसा भी मिलने लगा। अंत में तलवंडी गुट को लोंगोवाल के साथ मर्ज होना पड़ा। आज भी हालात ऐसे ही हैं। अकाली दल (बादल) की प्रधानी को लेकर लड़ाई चल रही है। 2017 से लगातार अकाली दल चुनाव में हार का सामना कर रहा है, लेकिन प्रधान सुखबीर बादल ही बने हुए हैं। बागी गुट ने अब नए प्रधान की आवाज उठाते हुए पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को प्रधान चुना है। अब अगले 6 महीने तय करेंगे कि अकाली दल का भविष्य क्या होने वाला है। 3 पॉइंट्स में समझें भर्ती कमेटी अकाली दल गुट का क्या होगा... दोनों पक्षों के लिए क्या रहेगी चुनौती... सीनियर पत्रकार जसबीर सिंह पट्‌टी कहते है कि अकाली दल बादल और भर्ती कमेटी गुट के लिए आने वाले कुछ महीने काफी अधिक संवेदनशील रहने वाले हैं। अब असली-नकली अकाली दल की लड़ाई शुरू होगी। 4 पॉइंट्स में समझें क्या होगी चुनौतियां- भाजपा अहम रोल अदा कर सकती है... अब भाजपा के पास दो विकल्प : पंजाब राजनीति के शोधकर्ता एस. पुरुषोत्तम की माने तो भाजपा के अकाली दल से गठजोड़ करने के सुर दोबारा से उठने लगे हैं। अब भाजपा के पास भी दो विकल्प हो गए हैं। भाजपा अकाली दल (बादल) और भर्ती कमेटी गुट में से किसी को भी चुन सकता है। बागी गुट के कई नेता भी भाजपा के संपर्क में हैं। वहीं, बादल गुट भी 2017 के बाद आए डाउनफॉल को देखते हुए भाजपा की तरफ जाने का इच्छुक है। ऐसे में दोनों गुटों के अस्तित्व को मजबूत करने के लिए भाजपा अहम रोल अदा करेगी। वहीं, भाजपा भी दोनों में से किसी को भी चुन सकती है। लोकसभा और विधानसभा में अकाली दल (बादल) की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि भाजपा उन्हें बागी गुट से अधिक प्रेफरेंस दे। दोनों ही गुट भाजपा के लिए एक समान हैं। केंद्र सरकार से निकटता बनाएगी अहम : पंजाब में अकाली दल से नाराजगी के दो सबसे अहम कारण बेअदबी थी और दूसरा बंदी सिखों की रिहाई के लिए कदम ना उठाना था। भर्ती कमेटी गुट ने सोमवार की सभा में इन दोनों मुद्दों को अहम जगह दी है। इनमें से बंदी सिखों की रिहाई के लिए केंद्र की जरूरत है। ऐसे में अगर बागी गुट और बादल गुट, दोनों में से कोई भी केंद्र तक पहुंच बना, आने वाले एक साल में इसे लेकर कोई फैसला करवा देती है तो राज्य में उन्हें मजबूती मिलेगी। वहीं, बेअदबी को लेकर राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए दोनों ही पक्षों को सड़क पर उतरना होगा।
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