Search…

    Saved articles

    You have not yet added any article to your bookmarks!

    Browse articles
    Select News Languages

    GDPR Compliance

    We use cookies to ensure you get the best experience on our website. By continuing to use our site, you accept our use of cookies, Privacy Policies, and Terms of Service.

    गुजरात में पाटीदार आंदोलन के 10 साल पूरे:हार्दिक पटेल बोले- हर कोई CM, PM बनना चाहता है; मेरी उम्र 31, अच्छा काम किया तो ढेरों मौके मिलेगे

    5 hours ago

    1

    0

    25 अगस्त, 2015... ये आज से ठीक 10 साल पहले की तारीख है, जब अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में पाटीदारों की एक ऐतिहासिक विशाल जनसभा हुई थी। ये सभा कोई साधारण सभा नहीं थी, क्योंकि इसमें मौजूद भीड़ को देखकर दशकों तक गुजरात पर राज करने वाली भाजपा सरकार की नींव हिल गई थी। पाटीदार आरक्षण आंदोलन अपने चरम पर था, गांव-गांव रैलियाँ हो रही थीं। बस एक ही मांग थी, पाटीदारों को आरक्षण दो। ऐसे में अहमदाबाद में हुई सभा में सबकी नजरें एक चेहरे पर टिकी थीं। वो चेहरा था 21 साल के हार्दिक पटेल का। आज जब इस आंदोलन को 10 साल होने पर दिव्य भास्कर ने उस समय पाटीदार आरक्षण आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे और अब सत्तारूढ़ भाजपा विधायक हार्दिक पटेल से खास बातचीत की है। पढ़ें, उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश... सवाल: आज 25 अगस्त, 2015 को पाटीदार आंदोलन के दस साल पूरे हो रहे हैं। उस बारे में क्या कहेंगे? जवाब: 25 अगस्त को एक 21 वर्षीय युवा के रूप में जनता ने आप पर जो भरोसा जताया, वह सिर्फ एक अस्थायी भरोसा नहीं था। बल्कि गुजरात के हजारों गांवों में रहने वाले गरीबों, किसानों, पाटीदारों, उनके बेटों और खासकर विधवा माताओं-बहनों के सपनों को हमने पूरा किया। हमने एक विशाल जनसभा के जरिए मुख्यमंत्री, मंत्रियों, देश के प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों तक मैसेज पहुंचाने की कोशिश की। यह हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा बड़ी और आक्रोशपूर्ण बैठक थी। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि उस दिन अहमदाबाद में 20 लाख लोग इकट्ठा होंगे। लोग स्वेच्छा से अपने खर्चे पर, अपनी योजना के साथ, अपने तरीके से अहमदाबाद आए थे और अपनी मांगें रखी थीं। वह एक ऐतिहासिक दिन था। सवाल: आपने 25 अगस्त को जीएमडीसी की बैठक में हिंदी में भाषण दिया था। इसके पीछे क्या कारण था? जवाब: मैं कभी भी भाषण देखकर नहीं देता। 25 अगस्त का भाषण साधारण नहीं था। पूरे देश और दुनिया को यह बताना था कि पाटीदार समुदाय गुजरात का एक महत्वपूर्ण समुदाय है। यह उतना सक्षम समुदाय नहीं है जितना लोग समझते हैं। गांवों में पांच-दस बीघा जमीन पर खेती करने वाला किसान फटी हुई धोती और फटे कपड़े पहनकर खेती करता है। मकसद दुनिया को यह बताना था कि उसके बेटे का भविष्य कैसे बेहतर हो सकता है। उस दिन जब मैं मंच पर पहुंचा और देखा कि पांच-दस हजार नहीं, बल्कि लाखों लोग आए हैं। देशभर का मीडिया भी वहां मौजूद था, तो मैंने सभी लोगों तक पहुँचने के लिए हिंदी में भाषण दिया। मैदान में बैठा हर आम आदमी भी मेरी बात समझ गया। मेरी बात सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी राज्यों की जनता तक पहुंच गई। सवाल: 25 अगस्त की मीटिंग में आपने कहा था कि मुख्यमंत्री खुद जीएमडीसी मैदान में आवेदन लेने आए। इस बात को 10 साल हो गए हैं। आज आप इसे कैसे देखते हैं? क्या वो गलत था? जवाब: बिल्कुल नहीं। अगर कोई मेरे दफ्तर में आकर अपनी बात रखता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं। 25 अगस्त को उस मैदान में 20 से 25 लाख लोग थे। मैंने कहा था कि हमें कलेक्टर को आवेदन देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम पहले ही 150 रैलियां करके कलेक्टर को आवेदन दे चुके हैं। 151वां आवेदन देने की जरूरत नहीं है। हमारा बस इतना कहना था कि मुख्यमंत्री आएं, आवेदन लें, हमारी मांग मानें और उसे समझें। इतनी साधारण बात थी कि आरक्षण का सर्वे कराने की घोषणा कर दी जाए। मुझे इस फैसले पर जरा भी अफसोस नहीं है। सवाल: आंदोलन के दिन आपके पास जो चिट्ठी आई थी, उसकी बहुत चर्चा हुई। लोग कहते हैं कि हार्दिक को एक चिट्ठी मिलती है। उसे पढ़ने के बाद, हार्दिक मुख्यमंत्री को फोन करने का फैसला किया। इस चिट्ठी की सच्चाई क्या है? जवाब: उस दिन हजारों मीडियाकर्मी वहां मौजूद थे, तो किसी ने उस चिट्ठी की फ़ुटेज ली होगी। किसी मीडिया के पास फ़ुटेज क्यों नहीं है? इसका मतलब है कि जो पत्रकार वहां आए थे, वे उतने सक्षम नहीं थे। किसी के पास उस चिट्ठी की फोटो जरूर होगी। कई बार मुझे हंसी आती है। कुछ लोग खुद को राजनीतिक विश्लेषक, बड़ा पत्रकार समझते हैं। कभी-कभी उनकी बातें असाधारण होती हैं। पता नहीं उन पर भरोसा करें या नहीं। सवाल: तो फिर आप ही बताइए असलियत क्या थी? जवाब: कोई चिट्ठी नहीं थी। ये मेरा विचार था। सरकार से मांग करना जनता का अधिकार है। आज मैं विधायक हूँ। अगर मेरे इलाके के लोग मुझसे कोई शिकायत करते हैं, तो मुझे उसकी बात सुननी होगी। मैं उनकी बात सरकार के सामने रखूंगा और अगर वो पूरी नहीं हो पाती, तो जनता जो भी चाहेगी। मुझे वह करना होगा। सवाल: आंदोलन के 10 साल होने पर कोई ऐसा राज, जो अब तक दुनिया के सामने नहीं आया? जवाब: 2015 में, आंदोलन के 15-20 दिन बाद, कोर्ट में (हेबियस कॉर्प्स) बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी। लोगों में चर्चा थी कि हार्दिक को पुलिस ले गई है। रात के 2 बजे कोर्ट खुला और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई यानी हार्दिक को पुलिस ले गई। उस घटना के बाद हाईकोर्ट ने हमारे याचिकाकर्ता को डांटा था। क्योंकि वो सही मायनों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका नहीं थी। हम पुलिस से भाग रहे थे। हम चार जिलों की सीमा पार करके पुलिस से बचते हुए पाटडी के पास अखियाणा गांव पहुंच गए थे। सवाल: शुरुआती दिनों में संघर्ष कैसा था? संघर्ष के प्रमुख चेहरों से आपकी मुलाकात कैसे हुई? जवाब: जुलाई 2015 में वीरमगाम में एक कार्यक्रम हुआ था। जिसमें गोरधन झड़फिया और तमाम नेता आए थे। उस कार्यक्रम में आरक्षण का मुख्य मुद्दा नहीं उठा था। बल्कि बहन-बेटियों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया गया था और समाज की एकता की बात की गई थी। इसके बाद मेहसाणा में एक कार्यक्रम हुआ। उस समय मैं एसपीजी में था। मेहसाणा के कार्यक्रम में कहा गया कि हमें सरकार के सामने अपने समाज के साथ शिक्षा और नौकरियों में हो रहे अन्याय की बात रखनी चाहिए। अगर पटेल समाज को गुजरात के अलावा दूसरे राज्यों में आरक्षण का लाभ मिलता है, तो गुजरात में भी मिलना चाहिए। इस बात को समाज के लोगों ने उठाया। पहली रैली मेहसाणा शहर में हुई थी। उसमें कोई नामी चेहरे नहीं थे, बल्कि एक ट्यूशन क्लास चलाने वाले भाई ने रैली की थी। उसके बाद, दूसरी रैली विसनगर में हुई। उसके बाद, बीजापुर, मानसा वगैरह पूरे गुजरात में लगातार कई रैलियां हुईं। उस समय एक वर्ग ऐसा भी था जो कह रहा था कि हमें आंदोलन नहीं करना चाहिए। कई लोग पूछ रहे थे कि क्या पटेल समुदाय को वाकई आरक्षण का लाभ मिलता है? हमारा कहना था कि पूरे पटेल समुदाय के लिए आरक्षण का सवाल ही नहीं है। बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को इसका लाभ मिलना चाहिए। यह बात पूरे गुजरात में फैल गई। समुदाय के युवाओं ने आक्रामक तरीके से इस बात को आगे बढ़ाया और नतीजा यह हुआ कि आज 10% EWS लागू हो गया है। वे इस बात को उस तरह से लोगों के बीच नहीं रख पाए जिस तरह से रखना चाहिए था। लेकिन सिर्फ पटेल ही नहीं, ब्राह्मण समुदाय, राजपूत समुदाय, लोहाना समुदाय, संक्षेप में कहें तो सामान्य वर्ग में आने वाली 48 जातियों को आरक्षण का लाभ मिला। सवाल: आपका परिवार विरामगाम में रहता था। आप हर जगह मीटिंग में कैसे जाते थे, कैसे सब मैनेज करते थे? जवाब: विरामगाम तालुका के मणिपुरा गांव के चिरागभाई थे। वो अहमदाबाद में रहते थे। शुरुआत में हम उनके घर पर रुके। उनकी अपनी कार थी। जिससे हम गुजरात में अलग-अलग जगहों पर मीटिंग में जाते थे। मैं उनके घर पर 15-20 दिन रुका। उसके बाद मेरी मुलाकात दिनेश बांभणिया से हुई, जो मूल रूप से जसदण के रहने वाले हैं। वो गांधीनगर में रहते थे। वे भी आंदोलन से जुड़ गए। इसी दौरान अल्पेश कथीरिया, निखिल सवाणी, नचिकेत मुखी, ये सभी लोग हमसे जुड़े। जब ​​हम सूरत में एक मीटिंग में गए, तो हमारी मुलाकात मथुरभाई सवाणी, लालजी बादशाह से हुई। हमने उनसे पूछा कि इस बात को समाज में कैसे रखा जाए। आंदोलन में सभी ने अपना सब कुछ दिया है। अल्पेश, दिनेश बांभणिया, चिराग पटेल 6 महीने जेल में रहे, मैं 10 महीने जेल में रहा। समाज ने भी हमारी सराहना की है, लेकिन कुछ वर्ग ऐसे हैं जो इसकी सराहना नहीं करते। सवाल: आप पर बार-बार आरोप लगाया जाता रहा है कि हार्दिक पटेल शहीदों के परिवार को भूल गए हैं। वो उनसे मिलने भी नहीं जाते। जवाब: शहीदों के परिवार ने ऐसा कभी नहीं कहा। अगर कोई मेरे खिलाफ है, तो मुझ पर आरोप लगाए। क्या शहीदों के परिवार ने कभी मुझ पर आरोप लगाया? जब मैं 10 महीने जेल में था, तो क्या मेरे माता-पिता ने किसी पर आरोप लगाया था? हर कोई संपर्क में है। मैं हर किसी से बात करता हूं। अगर किसी को कोई समस्या है, तो हम उनके साथ हैं। अगर पालनपुर के गढ़ गांव के किसी शहीद की बेटी को नौकरी से संबंधित कोई समस्या है, तो वह हमारे संपर्क में है और वह हमें मैसेज भी भेजती है। मैं स्पष्ट रूप से मानता हूं कि मैंने अच्छा काम करने की कोशिश की। कुछ लोग लगातार विरोध कर रहे हैं। मुझे उन लोगों की परवाह नहीं है। सवाल: जब आंदोलन चल रहा था, तब आप कहते थे कि अगर मैं चुनाव लड़ूं, तो मेरे घर पर पत्थर फेंकना। आज आप विधायक हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है? जवाब: मैं 2017 में विधायक नहीं बना। आंदोलन 2019 में खत्म हो गया। चूंकि आरक्षण का लाभ मिल गया है, तो क्या आंदोलन खत्म होने के बाद मैं कोई राजनीतिक फैसला नहीं ले सकता? लोगों ने मुझे इतना प्यार, विश्वास और सम्मान दिया है। अगर सत्ता में रहते हुए भी वे पूरे देश में 10% EWS लागू कर सकते हैं, तो क्या सत्ता में रहते हुए अपने क्षेत्र और देश की जनता के लिए काम करना कोई गुनाह है? अगर मैं 2017 में बाकी लोगों की तरह भाजपा में शामिल होता, तो यह बात मुझ पर भी लागू होती। कुछ लोगों को लग रहा है कि हार्दिक पटेल राजनीति में नहीं आने वाले थे, तो अब कैसे आ गए? लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि मैं आंदोलन खत्म होने के बाद ऐसा फैसला क्यों नहीं ले सकता? मेरे क्षेत्र की जनता ने मुझे बहुमत देकर भेजा है। सिर्फ दो-चार लोगों की टिप्पणी से मेरे राजनीतिक भविष्य पर कोई सवाल नहीं उठता। सवाल: कई लोग मानते हैं कि पूरा आरक्षण आंदोलन अमित शाह का ब्लूप्रिंट था। आप क्या कहेंगे? जवाब: पूरा आंदोलन स्वतःस्फूर्त था। पूरा आंदोलन जनता के दर्द पर आधारित था। अगर अमित शाह का ब्लूप्रिंट होता, तो आंदोलन 2017 में ही खत्म हो जाना चाहिए था। यह आंदोलन तब भी चल रहा था जब विजय रूपाणी मुख्यमंत्री थे। लोग सिर्फ ऊपर की खबरें सुनते हैं, अंदर की बातें नहीं देखते। अगर ऐसा होता, तो मैं 9 महीने जेल में नहीं रहता। सवाल: राजनीतिक गलियारों में चर्चा ​​है कि हार्दिक पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के चार हाथ हैं। इतनी गहरी बॉन्डिंग कैसे बनी? जवाब: भारतीय जनता पार्टी के हर कार्यकर्ता पर शीर्ष नेतृत्व के चार नहीं, बल्कि हजारों हाथ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल इस समय हमारे शीर्ष नेतृत्व हैं। शीर्ष नेतृत्व भाजपा को मजबूत करने के लिए काम करते हुए हर कार्यकर्ता की मदद और मार्गदर्शन करने की लगातार कोशिश करता है। साणंद विधानसभा क्षेत्र अमित शाह के लोकसभा क्षेत्र में भी आता है। जब मैं चुनाव लड़ रहा था, तब अमित शाह लगातार मेरे पीछे रहते थे। वो कहते थे- क्या हो रहा है हार्दिक? क्या करना चाहिए? अगर कुछ हो तो मेरे ध्यान में लाओ। मुझे अमित शाह का काम करने का तरीका, उनकी शैली बहुत पसंद है। जब हम राजनीति कर रहे होते हैं, तो कट्टर राजनेता होना बहुत बड़ी बात होती है। आज देश के केंद्रीय गृह मंत्री होने के बावजूद, वो गांधीनगर लोकसभा का एक भी कार्यक्रम मिस नहीं करते। चाहे वो सबसे छोटी आंगनवाड़ी का उद्घाटन ही क्यों न हो, अमित शाह खुद आते हैं। हमें इन नेताओं से सीखना चाहिए। सवाल: मंच से 25 लाख लोगों की भीड़ में आप खुद को कहां देखते थे? जवाब: मैं अपने भविष्य और वर्तमान को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हूं। मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। मैंने आंदोलन में भी अपना शत-प्रतिशत दिया था। उस समय मेरे पास केंद्रीय सुरक्षा थी। मुझे बिना संवैधानिक तौर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसी सुरक्षा दी गई थी। मैं भारत के किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री से बिना अपॉइंटमेंट के फोन करके मिल सकता था। मैंने ये सब देखा है। मेरे पास सबसे बड़ा हथियार मेरी उम्र है। मैं सिर्फ 31 साल का हूं। मुझे काम के ढेरों मौके मिलेंगे। अगर मैं अच्छा काम करता रहा, तो भविष्य में मुझे काम के ढेरों मौके मिलेंगे। सवाल: जिस तरह से आंदोलन चल रहा था, कई लोग कह रहे थे कि हार्दिक में मुख्यमंत्री बनने की क्षमता है, लेकिन आज आप सिर्फ एक विधायक हैं। इस बारे में क्या कहेंगे? जवाब: लोग जिंदगी के 50 साल भी लगा दें, तो भी विधायक नहीं बन सकते। जनता ने मुझे गुजरात का सबसे युवा विधायक बनाया है। विधायक बनने के 2 साल में ही वीरमगाम में 1800 करोड़ रुपए का अनुदान आ गया। इससे बड़ा अवसर और क्या हो सकता है? पार्टी ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है, जनता ने दी है तो उन्हें संतुष्टि तो होगी ही। मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। जो मुख्यमंत्री है, वह प्रधानमंत्री बनना चाहता है। जो प्रधानमंत्री है, वह लंबे समय तक प्रधानमंत्री बना रहना चाहता है। जो विधायक है, वह मंत्री बनना चाहता है। जो मंत्री है, वह मुख्यमंत्री बनना चाहता है। सबकी अपेक्षाएं होती हैं। जिसने 200 करोड़ कमाए हैं। वह 500 करोड़ कमाना चाहता है। अडानी, अंबानी भारत के सबसे अमीर परिवार हैं। वे दुनिया के सबसे अमीर परिवार बनना चाहते हैं।' सवाल: आप भाजपा के पाटीदार नेता हैं। आपका नाम कभी स्टार प्रचारकों की सूची में क्यों नहीं रहा? जवाब: मैं वीरमगाम में विधायक के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं। मेरे इलाके में काफी काम है। मेरे बगल वाली कडी सीट के लिए हमने समूह बैठकें की हैं। विसावदर में सौराष्ट्र शैली की राजनीति है, इसलिए सौराष्ट्र के नेताओं को वहां जिम्मेदारी दी गई। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तय करता है कि किसे क्या जिम्मेदारी दी जाए। यहां (भाजपा में) कांग्रेस जैसा कुछ नहीं है। न घोड़े हैं, न ड्राइवर, न कोई ऐसी जगह है जहां कोई जहां चाहे दौड़ा ले। यहां सबकी जिम्मेदारी तय है और हम योजनाबद्ध तरीके से चल रहे हैं, इसीलिए हम 30 साल से सत्ता में हैं। पार्टी सही निर्णय लेती है कि किसे क्या जिम्मेदारी देनी है। अगर पार्टी के मन में कुछ और होगा, तो हमें वह जिम्मेदारी मिलेगी। अगर पार्टी कहती है कि वह इस तरह से संगठन करना चाहती है, तो हम उसके अनुसार काम करेंगे। मेरा स्पष्ट मानना ​​है कि स्टार प्रचारकों की सूची आपके राजनीतिक भविष्य का फैसला नहीं करती है। सवाल: क्या आपको कभी इस बात का अफसोस होता है कि जब कांग्रेस में थे, तब एक राष्ट्रीय नेता थे। अब सिर्फ एक क्षेत्र तक ही सीमित हैं? जवाब: एक बात तो ये है कि मुझे तय करना था कि मुझे नेता बनकर नेतृत्व स्थापित करना है या क्षेत्र में काम करके उसे बेहतर बनाना है। मेरे लिए जरूरी है कि मैं क्षेत्र में रहूं। लोगों के लिए काम करूं और बरसों से चली आ रही समस्याओं का समाधान करूं। अगर मैं एक राष्ट्रीय नेता बनकर घूमूंगा तो मीडिया में मेरी बातें आएंगी, मेरी तस्वीर छपेगी। लेकिन उससे लोगों का भला नहीं होगा। आज मैं विधानसभा में विधायक के तौर पर कैसे नीति निर्माण में हिस्सा बनूं और लोगों का भला करूं? मैं इसी दिशा में काम कर रहा हूँ। सवाल: हाल ही में, विरामगाम में आपका बयान आया कि भाजपा में आंतरिक तनाव है। आपको ऐसा बयान क्यों देना पड़ा? जवाब: आंतरिक तनाव की कोई बात नहीं है। जब मैं किसी भी चीज के बारे में बात करता हूं। तो मीडिया को उसे अपने तरीके से लेने का अधिकार है। विरामगाम नगर पालिका में हमारे 28 से 30 पार्षद हैं। यह दुःख की बात है कि जब विरामगाम का गौरव एक टावर और पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ तो केवल 8 से 9 पार्षद ही कार्यक्रम में आए। जबकि सभी दलों के लोगों को, सभी पार्षदों को अपने आंतरिक मतभेदों को पीछे छोड़कर आना चाहिए था। सवाल: पिछले 3 वर्षों से आरक्षण आयोग में कई पद रिक्त हैं। यह मुद्दा आपके ध्यान में कब से आया? जवाब: जब 2017-18 में आयोग का गठन हुआ था, तब इसके अध्यक्ष की नियुक्ति की गई थी। आयोग की वजह से हम गुजरात के लोगों को 600-700 करोड़ रुपये का लाभ प्रदान कर पाए हैं। पिछले ढाई वर्षों से कोई अध्यक्ष नहीं है। आवश्यकतानुसार कोई बोर्ड निदेशक नहीं हैं। कई फाइलें और कई आवेदन लंबित हैं। कुछ समय पहले मैंने मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित किया था कि आवेदन एक साल से लंबित हैं। जिसके कारण कई लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। दिव्य भास्कर के जरिए मैं मुख्यमंत्री और सरकार के सामाजिक अधिकार विभाग की मंत्री भानुबेन का ध्यान भी आकर्षित करना चाहता हूं, कि यदि रिक्त पदों को भर दिया जाए, तो लोगों को उस उद्देश्य का लाभ मिल सकता है, जिसके साथ इस निगम का गठन किया गया था।
    Click here to Read more
    Prev Article
    पोते को रस्सियों से बांध स्कूल ले गया दादा:अमृतसर में समाजसेवकों ने रोका, पुलिस आई, लिखित आश्वासन के बाद छोड़ा
    Next Article
    हाईकोर्ट शिफ्ट होगा या नहीं, फैसला वकील करेंगे:चंडीगढ़ के सरणगपुर में नई जगह तय, मौजूदा परिसर यूनेस्को साइट में आता है

    Related Politics Updates:

    Comments (0)

      Leave a Comment