एमपी सरकार बताएगी- माखन चोर नहीं थे श्रीकृष्ण:सीएम के सांस्कृतिक सलाहकार बोले- जिस घर में हजार गायें, वहां माखन-दूध चुराने की क्या जरूरत
7 hours ago

भगवान कृष्ण को कई नामों से पुकारा जाता है। उन्हें माखन चोर भी कहा जाता है लेकिन मध्यप्रदेश सरकार अब कृष्ण के नाम के साथ जुडे़ 'माखन चोर' के टैग को हटाने के लिए सामाजिक चेतना का अभियान चलाएगी। सामाजिक स्तर पर कार्यक्रमों में कृष्ण के माखन खाने वाले प्रसंग का सही तथ्य लोगों के बीच रखा जाएगा। इसकी पहल मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने की है। जन्माष्टमी पर मुख्यमंत्री ने कहा था- भगवान कृष्ण का माखन के प्रति जो लगाव है, वो ऐसा है कि उस समय कंस के घर माखन जाता था। भगवान कृष्ण का आक्रोश था कि ये कंस हमारा माखन खाकर हम पर ही अत्याचार कर रहा है। आक्रोश जताने के लिए माता-पिता से लेकर गांव तक उन्होंने बाल ग्वाल की टीम बनाई कि अपना माखन खाओ या मटकी फोड़ दो। हमारे दुश्मन को माखन नहीं पहुंचना चाहिए। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद दैनिक भास्कर ने उनके सांस्कृतिक सलाहकार श्रीराम तिवारी से बात की। उन्होंने अभियान को लेकर सवालों के जवाब दिए। सवाल : भगवान कृष्ण के साथ माखन चोर का टैग हटाने की पहल क्यों ?
जवाब : पिछले सैकड़ों सालों से भारतीय ज्ञान परंपरा को लेकर हमारे श्री राम हों, श्री कृष्ण हों, महादेव हों, देवी हों...सबके बारे में मिथ्या अवधारणाएं आरोपित करने और भारत विखंडन का निरंतर संघर्ष चलता रहा है। वो निरंतरता अभी खत्म नहीं हुई। सवाल : सैकड़ों साल पुरानी धारणाएं कैसे बदलेंगी?
जवाब : इस बात पर कम ध्यान जाता है। जैसे भारत सरकार ने दो सन् अपना रखे हैं- एक ईसवी सन और दूसरा शक संवत् है। कोई भी विद्वान ये बताने का कष्ट करेगा क्या कि जिन्होंने हिन्दुस्तान को पराधीन करने का प्रयास किया, उनके द्वारा प्रवर्तित सन् क्यों अपनाए गए हैं। जैसा अंग्रेजों ने किया, वैसा ही शकों ने किया था। हम दोनों को सिर पर बैठाए हुए हैं। ऐसी बहुत सारी मिथ्या धारणाओं को बदलने की जरूरत है। श्री कृष्ण को लेकर ज्यादा पुरानी बात नहीं है। जब ये मान लिया जाता था कि न महाभारत हुआ, न कृष्ण हुए न राम हुए। हमारा प्रयास है कि तथ्यात्मक जानकारी समाज के सामने लाना चाहिए तो मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के निर्देशन में हम लोग सक्रिय हैं। सवाल : मध्य प्रदेश में श्री कृष्ण के संबंध वाले स्थानों को लेकर क्या योजना है?
जवाब : मध्य प्रदेश में श्री कृष्ण से जुड़े तीन स्थान हैं। एक रुक्मणी के हरण का प्रसंग है। रुक्मणी जी विदर्भ से खुद चलकर धार के अमझेरा के पास अमका-झमका आई थीं। उन्होंने श्री कृष्ण को संदेश देकर ये तय किया था कि वे उनके साथ रहना चाहती हैं लेकिन परिवार के लोग उनके साथ शादी नहीं करना चाहते। दूसरा संबंध उज्जैन से मिलता है, जहां की मित्रवृंदा उनकी आठ पटरानियों में से थीं। तीसरा संबंध रायसेन के पास जामगढ़ पहाड़ियों पर उनकी पत्नी जाम्बवती से विवाह का प्रसंग का है। यहीं जामवंत और कृष्ण के बीच युद्ध की घटना भी हुई है। ऐसे बहुत सारे प्रसंग मिलते हैं। हमारे आख्यान और परंपराओं को समझने की जरूरत है। इन स्थानों के विकास से लेकर लोगों को जोड़ने का प्रयास होगा। सवाल : मध्य प्रदेश में मंदिरों को लेकर क्या कोई सर्वे कराया है? आगामी क्या योजना है?
जवाब : मप्र में संस्कृति विभाग ने जो सर्वे कराया है, उसके मुताबिक प्रदेश में श्री कृष्ण के राज्य संधारित और निजी क्षेत्र के लगभग 3222 मंदिर हैं। मुख्यमंत्री ने इन सभी मंदिरों की साफ सफाई, श्रृंगार के लिए पहल की है। उसके लिए पुरस्कार भी तय किए हैं। जन्माष्टमी के दिन अच्छे से साज-सज्जा करने पर प्रथम मंदिर को डेढ़ लाख, द्वितीय मंदिर को एक लाख का पुरस्कार देंगे। भाव ये है कि अलग-अलग तरीके से पहल करके मंदिरों का संरक्षण-सुरक्षा हो और भक्ति, आराधना के जरिए समाज लाभ ले। सवाल : सरकार किस स्तर पर प्रयास करेगी, समाज की क्या भूमिका होगी?
जवाब : सरकार और समाज दोनों अलग नहीं हैं। लोकतंत्र है तो राज्य समाज को प्रेरित कर सकता है। यही समाज राज्य को प्रेरित कर सकता है। बात ये है कि जब तक समाज के भाव अपने प्राचीन वैभव और श्री कृष्ण, श्री राम की शिक्षाओं से नहीं जुड़ेंगे, तब तक कुछ नहीं होगा। राज्य का कर्तव्य है शिक्षा देना, समाज को सुरक्षा देना। आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षाओं के भाव से समृद्ध करना भी राज्य का कर्तव्य है और राज्य उसी की पहल कर रहा है। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं...
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