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    IIT-कानपुर के प्रोफेसर ने बताया धराली में क्यों मची तबाही:यहां की जियोग्राफिकल कंडीशन फैन डिपॉजिट की तरह, अभी भी खतरा; सरकार को स्टडी करानी होगी

    6 hours ago

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    उत्तराखंड के धराली में 5 अगस्त को आई तबाही ने वहां के जन-जीवन को स्थिर सा कर दिया है। इस जल प्रलय में न जानें कितनी मौतें हुई हैं ये तो रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने के बाद ही पता चलेगा। आखिर यहां पर जल प्रलय क्यों आई…? इसके पीछे की वजह क्या है, इस तरह के सवाल हर किसी के जेहन में कौंध रहे हैं, लेकिन कोई सटीक जवाब नहीं मिल पा रहा है। तबाही की तह तक पहुंचने के लिए दैनिक भास्कर ने IIT कानपुर के अर्थ साइंस विभाग के प्रो. जावेद एन मलिक से बात करके सच्चाई को जानने का प्रयास किया। उन्होंने कहा- धराली में ज्यादा बारिश नहीं हुई। यहां की भौगोलिक स्थिति फैन डिपॉजिट की तरह बन गई है। यहां पर लोगों को बसने के लिए अनुमति नहीं देनी चाहिए। सबसे पहले धराली हादसे के बारे में जानिए... उत्तरकाशी के धराली गांव में 5 अगस्त की दोपहर 1.45 बजे बादल फटने से भारी तबाही मच गई। अब तक 5 लोगों की मौत हो चुकी है, इनमें से 2 के शव बरामद किए गए हैं। 100 से ज्यादा लोग लापता हैं। SDRF, NDRF, ITBP और आर्मी बचाव कार्य में जुटी हैं। ITBP के प्रवक्ता कमलेश कमल ने बताया, 400 से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू किया गया है। 100 से ज्यादा अभी भी फंसे हैं। सेना के 11 लापता जवानों का रेस्क्यू कर लिया गया है। इधर, आपदा के 24 घंटे बीत जाने के बाद भी प्रभावित इलाकों धराली, हर्षिल और सुखी टॉप में सर्च ऑपरेशन जारी है। मैप से समझिए घटनास्थल को... अब पढ़िए IIT कानपुर के प्रोफेसर की पूरी बातचीत सवाल: धराली में क्या हुआ और ये आपदा क्यों आई है? जवाब: धराली में इतनी ज्यादा बारिश नहीं हुई थी। मौसम विभाग (आईएमडी) की रेन फॉल की रिपोर्ट के मुताबिक इतनी बारिश नहीं हुई कि यहां पर हम लोग बादल फटने की बात को लेकर तबाही आने पर चर्चा करें। लेकिन हमने जो वहां की लैंड फॉर्म्स का स्टडी किया। वहां की भौगोलिक स्थिति फैन डिपॉजिट की तरह बन गई है। यहां पर लोगों को बसने के लिए अनुमति नहीं देनी चाहिए। इस तरह के इलाके बहुत खतरनाक होते हैं। ये एरिया ऐसे होते ही जहां कभी भी और कहीं पर भी पानी का तेज बहाव आ सकता है। वो भी कई तरह से। वहां पर मल्टीपल वैल्यूएबल फैन के हालात बने हुए हैं और कभी भी इस तरह का तेज बहाव ऐसे इलाके में हो सकता है। सवाल: क्या ऐसे एक्टिविटी का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है? जवाब: ये कब और क्यों होगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन ये निश्चित है कि पहले भी ऐसा हुआ होगा। भविष्य में भी ऐसा हो सकता है। अगर हम इसकी प्रॉपर स्टडी करें तो सब सामने आ जाएगा। इसे आज के दौर में ग्लोब ग्लेशियर लेक आउट बस्ट फ्लड कहा जाता है। लेकिन ये पहले भी होता रहा है। ऐसा नहीं है कि अभी होना शुरू हुए हैं। क्योंकि हिमालयन ड्रेन में बहुत सारी जगह है जहां पर लैंड स्लाइड्स होने पर नैचुरल डैम्स और झील बन जाते हैं। इसमें ब्रीच होने से इस तरह के हादसे होते हैं। थोड़ा सा ऊपर जाकर देखेंगे तो लगेगा ये तो हिमालय आ गया है। भागीरथी नदी में बहुत सारी स्ट्रेंस आकर मिल रही हैं। अगर ज्यादा वर्षा होगी तो भी भागीरथी में ज्यादा पानी जाएगा। अब भागीरथी में तो पानी आ रहा है, लेकिन ये जिस लोकेशन पर बसेरा था ये ठीक नहीं है। आसपास के इस तरह का इलाका खतरे से भरा हुआ है। सवाल: क्या ये नदी का रास्ता था? जवाब: ये बैंक्स हैं। इसमें एल्विल फैंस आकर डिपॉजिट हो गए हैं। तभी तो इसे ड्रेन का एरिया कहा जा सकता है, लेकिन अभी नदी ने कुछ नहीं किया है। हमारा ये कहना है कि हिमालयन ड्रेन में इस तरह के बहुत से एरिया हैं। उत्तराखंड में इस तरह के हादसे बढ़ रहे हैं, भविष्य में अलर्ट रहने की जरूरत है। सवाल: केदारनाथ और धराली हादसे में समानता क्या है? जवाब: नैनीताल में 1880 में एक बड़ा भूस्खलन हुआ था। इसमें नैनी झील का एक हिस्सा मलबे से पट गया था। बाद में यहां खेल का मैदान बना दिया गया था। 2012 में केदारनाथ घाटी में हुई तबाही और धराली हादसे में समानता है। केदारनाथ मंदिर तो नदी के चैनल पर ही बना है। केदारनाथ में पानी के साथ बेहिसाब बोल्डर और मलबा आया था। धराली में लोग नदी के बाढ़ क्षेत्र में बसे थे। धराली में 2024 और इस साल अब तक ज्यादा बारिश नहीं हुई है। सैलाब आने की वजह ऊपर बनी झील का फटना है। झील का पानी अपने साथ बड़े-बड़े बोल्डर और काफी मलबा लेकर आता है। ये मलबे जब पानी की ताकत के साथ नीचे आते हैं तो इस मलबे से हाथ वाले पंखे जैसी आकृति (अल्लूवियल फैन) बनता है। सैटेलाइट तस्वीरों में इसे देखकर आसानी से समझा जा सकता है। ऐसे इलाके खतरनाक होते हैं। यहां तो मलबा नदी के सहारे आएगा। सवाल: धराली में लोगों ने नदी को दिशा देने का प्रयास किया था। क्या सही है? जवाब: उच्च हिमालयी क्ष्रेत्रों में बाढ़ आती रहती है। जमीन (लैंड फॉर्म) को देखकर इसे समझा जा सकता है। यहां जमा गाद (डिपॉजिट) से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि सैलाब आने की स्थिति में क्या हो सकता है। धराली में ऊपर की तरह बर्फ की चोटियां हैं। भागीरथी नदी में कई छोटी सहायक नदियां भी आकर मिलती हैं। बिल्कुल तीखी ढलानों पर ऊपर से पानी बहुत ताकत से नीचे आया और तबाही मचा दी। तकनीकी शब्दावली में इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड कहते हैं। 2021 में तो फरवरी में धोलीगंगा पर आया सैलाब हाइड्रो पावर प्लांट बहा ले गया था। धराली में लोगों ने नदी को दिशा देने का प्रयास किया था। ऐसे लैंडफॉर्म की स्टडी कर सरकार को प्रस्ताव दिया जा सकता है कि लोगों को दूसरी जगह बसाकर जोखिम कम किया जाए। ---------------------------- ये खबर भी पढ़ें... ग्राउंड रिपोर्ट: 14 किमी पैदल चल धराली पहुंचा भास्कर रिपोर्टर:हर्षिल की नई झील बनी खतरा; 5 दिन गुजरे, लापता लोगों को ढूंढने का काम शुरू नहीं 5 दिन बीत चुके हैं, उत्तराखंड के धराली में बीती 5 अगस्त को हुई लैंड स्लाइड के बाद से अब तक रास्ता नहीं खुला है। बर्बाद हो चुके धराली तक मदद पहुंचाने या आने-जाने का एक ही तरीका है- हेलिकॉप्टर। दैनिक भास्कर बीते 5 दिन से इस तबाही की कवरेज कर रहा है, लेकिन अब तक हम धराली तक नहीं पहुंच पा रहे थे। वजह थी खराब रास्ता और टूटे पुल। पढ़िए पूरी खबर
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