जींद के छोटे गांव से इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर बनीं सुनीता:सूट-सलवार में खेलीं, ट्रेनिंग में पहली बार जुराब-जूते मिले, पिता की जिद से मिला मुकाम
1 day ago

हरियाणा के खेल विभाग की डिप्टी डायरेक्टर सुनीता खत्री अब ऐसी लड़कियों को खेलने का मौका दिला रही हैं, जो पिछड़े गांव-समाज से आती हैं। इसके पीछे वजह है कि उन्होंने खुद बहुत झेला है। वह जींद के जिस सफाखेड़ी गांव से हैं, वहां लड़कियों को खेलने की सोचना तो दूर घर से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं थी। सुनीता ने बताया कि पिता रोहतक के जाट कॉलेज में आते तो लड़कियों को खेलते देखते। फिर हमें बताते। मैंने खेलने की सोची तो नानी ने साफ मना कर दिया। उन्होंने बताया कि पिता की जिद के कारण खेलना शुरू किया, तो यह किसी जंग जीतने से कम नहीं था। शुरुआत में तो सूट-सलवार पहनकर हॉकी खेलीं। पहली बार ट्रेनिंग कैंप में ट्रैक सूट, जुराब व जूते पहनने को मिले तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एशियन गेम में जीते मेडल ने ग्रामीणों की मानो सोच ही बदल दी। अब कोशिश रहती है कि ऐसी लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका दे पाऊं, जो ऐसे हालात झेलती हैं। पढ़िए तानों के बीच खेल शुरू करने से लेकर एशियन गेम में मेडल जीतने तक का सफर… पहली ट्रॉफी मिली तो पिता ने पूरे गांव में दिखाई
सुनीता खत्री ने बताया कि हरियाणा की तरफ से पहला टूर्नामेंट 1992 में सब जूनियर नेशनल पुणे में खेलने का मौका मिला। अपने पहले ही मैच में गोल की हैट्रिक लगाई तो लोगों ने खूब तारीफ की। उन्हें एक छोटी सी ट्रॉफी भी मिली। जब अखबार में फोटो छपी तो पिता रणबीर सिंह ने पूरे गांव में घूमकर दिखाया। सुनीता ने बताया कि जब टूर्नामेंट जीतकर वह लौटीं तो ग्रामीणों ने उनका स्वागत भी किया। किसी ने 10 रुपए, किसी ने 20 रुपए तो किसी ने 50 रुपए देकर उन्हें सम्मानित भी किया। जो लोग पहले उन्हें खेलने के लिए मना करते थे, उनका नजरिया ही बदल गया और वो भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। 16 साल बाद एशियन में दिलाया मेडल
सुनीता खत्री ने बताया कि नेशनल से इंटरनेशनल खिलाड़ी बनने का सफर भी आसान नहीं रहा। दिन में चार बार प्रैक्टिस करते और अपने अंदर वो जुनून पैदा किया, जिसके चलते 1998 में 16 साल बाद एशियन खेलों में इंडिया को सिल्वर मेडल व 1999 में सीनियर एशिया कप में सिल्वर मेडल दिलाने में कामयाब हुए। भारतीय टीम में उनके साथ उनकी बहन कमला दलाल भी खेल रहीं थी। सुनीता खत्री ने बताया कि जब इंटरनेशनल मेडल लेकर गांव सफाखेड़ी व पैतृक गांव चिड़ी गए तो लोगों ने लड़कों की तरह उनका स्वागत किया। ट्रैक्टर पर बैठाकर पूरे गांव में जुलूस निकाला और सोने के मेडल बनवाकर ग्रामीणों ने दिए। साथ ही किसी ने देसी घी तो किसी ने रुपए देकर सम्मानित किया। पूरे गांव ने उनका माला पहनाकर स्वागत किया गया। सारे भाई बहन बने खिलाड़ी
सुनीता ने बताया कि उनकी बड़ी बहन कमला दलाल भी हॉकी की इंटरनेशनल खिलाड़ी रही हैं। छोटा भाई राजीव दलाल भी हॉकी खिलाड़ी रहा, जिसका 4 साल पहले देहांत हो गया। उससे छोटे सज्जन सिंह, हरियाणा पुलिस में डीएसपी हैं। छोटी बहन कविता दलाल हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर हैं और एक बेहतरीन एथलीट रहीं। सबसे छोटे भाई मंदीप दलाल पूना आर्मी में बॉक्सिंग कोच हैं। 2010 में छोड़ा खेल, 2016 में बनी असिस्टेंट डायरेक्टर
सुनीता खत्री ने बताया कि 2010 में उन्हें बेटा हुआ तो उनका ओलिंपिक टीम में शामिल होने का अवसर चूक गया। बेटा होने के बाद मास्टर्स में खेलती रहीं, लेकिन 2016 में वह असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर नियुक्त हो गईं। आज वह खेल विभाग में डिप्टी डायरेक्टर हैं और खिलाड़ियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्हें अपनी कहानी भी बताती हैं, ताकि उनके अंदर हिम्मत को बढ़ाया जा सके।
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