कृत्रिम-बारिश से फट सकता है बादल, मौसम बिगड़ने का खतरा:रामगढ़ बांध को भरने का दावा कितना सही, 2 करोड़ खर्च करके कंपनी को क्या फायदा?
16 hours ago

जयपुर के रामगढ़ बांध में क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश कराने का प्रयोग शुरू किया गया है। पहले दिन ट्रायल फेल हो गया। कंपनी (जेन एक्स एआई) 60 दिनों तक ड्रोन के जरिए कृत्रिम बारिश करवाने का प्रयोग करेगी। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या रामगढ़ बांध दोबारा भरेगा और किसानों को इससे फायदा होगा या नहीं? वहीं, दावा किया जा रहा है कि इससे बादल फटने और मौसम बिगड़ने का खतरा भी है। कहा जा रहा है- ड्रोन से कृत्रिम बारिश का प्रयोग सफल रहा तो निजी कंपनी सरकार के साथ मिलकर राजस्थान के कई और इलाकों में कृत्रिम बारिश करवाने का प्रोजेक्ट हाथ में ले सकती है। इस एक्सप्लेनर में जानेंगे क्या राजस्थान को फायदा या नुकसान... 1. रामगढ़ बांध भरेगा या नहीं.. जानकारों का तर्क है कि बांध को भरने के लिए कैचमेंट एरिया में बड़े इलाके में बारिश होना जरूरी है। कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण हैं जो इसमें पानी नहीं आने दे रहे हैं। ड्रोन से कृत्रिम बारिश का प्रयोग पायलट प्रोजेक्ट है, इसका अभी सफल होना बाकी है। एक बार जब कृत्रिम बारिश हो जाएगी, तब डेटा एनालिसिस से यह अनुमान लगेगा कि कृत्रिम बारिश से कितना पानी आएगा? सब कुछ इस ट्रायल की सफलता पर ही टिका है। जयपुर में यह प्रयोग पहली बार क्यों किया जा रहा है? राजस्थान में बारिश की कमी रहती है। अच्छे मानसून के बावजूद कुछ इलाकों में एक बारिश की कमी की वजह से फसलें चौपट हो जाती हैं। निजी कंपनी ने राजस्थान सरकार को कृत्रिम बारिश का आइडिया दिया। सरकार ने इसकी अनुमति दे दी। कृत्रिम बारिश पर प्रयोग करने वाली कंपनी के संस्थापक जयपुर के हैं, इसलिए उन्होंने जयपुर को चुना। पहले दिन कृत्रिम बारिश का ट्रायल क्यों फेल हुआ? 2. आखिर कैसे होती है कृत्रिम बारिश... कई बार बादलों में पर्याप्त नमी होने के बावजूद बारिश नहीं होती। बादलों पर खास रसायन छिड़ककर भारी किया जाता है, रसायन के संपर्क में आकर कुछ ही मिनटों में बादलों से पानी बरसने लगता है। इसके लिए अब तक प्लेन और मानवरहित विमान (UAV) का इस्तेमाल होता रहा है। प्लेन या यूएवी से बादलों पर सीडिंग करवाई जाती है। सीडिंग के कुछ देर बाद ही बारिश शुरू हो जाती है। कृत्रिम बारिश के लिए ज्यादा हाइट पर उड़ने वाले खास ड्रोन इस्तेमाल किए जाते हैं। ड्रोन को बादलों के ऊपर उड़ाकर केमिकल छिड़का जाता है। जयपुर में कृत्रिम बारिश का प्रयोग कर रही कंपनी सोडियम क्लोराइड का इस्तेमाल कर रही है। क्लाउड सीडिंग क्या है और यह कैसे काम करता है? 3. हेलिकॉप्टर को क्यों नहीं चुना गया, कितने ड्रोन आएंगे काम... प्लेन से क्लाउड सीडिंग में बड़े इलाके को कवर किया जाता है। प्लेन बड़े बादल को कवर करते हुए बड़ी दूरी तक क्लाउड सीडिंग करता है। प्लेन से होने वाली क्लाउड सीडिंग से काफी बड़े इलाके में कृत्रिम बारिश होती है, इसमें इलाका कंट्रोल में नहीं होता है। कितनी बारिश होगी, यह भी कंट्रोल नहीं होता, कई बार ज्यादा छिड़काव से बादल फटने का खतरा हो जाता है। ड्रोन से क्लाउड सीडिंग सस्ता होने के साथ छोटे इलाके में बारिश करवाई जा सकती है। कंपनी का दावा उनके पास पेटेंट टेक्नोलॉजी जयपुर में निजी कंपनी ने ड्रोन से कृत्रिम बारिश करवाने में प्रिसिजन तकनीक का प्रयोग कर सब कुछ कंट्रोल्ड परिस्थितियों में ट्रायल करने का दावा किया है। कंपनी का दावा है कि उनके पास पेटेंट तकनीक है जो छोटे इलाके में कृत्रिम बारिश करवाने में सक्षम है। जितनी जरूरत उतनी बारिश करवाई जा सकती है, जबकि प्लेन से क्लाउड सीडिंग पर कोई कंट्रोल नहीं होता। जयपुर में चल रहे ट्रायल में ड्रोन से कृत्रिम बारिश के लिए एक उड़ान में केवल 1500 ग्राम सोडियम क्लोराइड का प्रयोग हो रहा है। जहां कृत्रिम बारिश करवाई जाए, क्या वहां हमेशा इसकी जरूरत पड़ेगी? 4. इससे खतरा बढ़ेगा या फायदा होगा... क्लाउड सीडिंग के पर्यावरणीय खतरों को लेकर वैश्विक स्तर पर बहस छिड़ी है। प्लेन से होने वाली क्लाउड सीडिंग में सैकड़ों किलो केमिकल इस्तेमाल किया जाता है। बड़ी मात्रा में केमिकल का इस्तेमाल करने से उसका रिएक्शन होता है जो पर्यावरण के लिए घातक होता है। ज्यादा केमिकल के प्रयोग से बादलों का पैटर्न बिगड़ सकता है, उनसे होने वाला रिएक्शन कई बार कंट्रोल में नहीं रहता। बादल फटने, मौसम चक्र बिगड़ने जैसे खतरे पैदा हो जाते हैं। हालांकि ड्रोन से करवाई जाने वाली कृत्रिम बारिश में केमिकल की मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए उतना नुकसान नहीं होता लेकिन वैज्ञानिकों का एक वर्ग इस तर्क से भी सहमत नहीं है। एक बार कृत्रिम बारिश कराने में कितना खर्च आता है? 5. राजस्थान में सूखे के लिए वरदान साबित होगी या फेल होगा प्रोजेक्ट... यह पायलट प्रोजेक्ट सफल हुआ तो राजस्थान में पानी के कुछ बड़े रिजवार्यर (जलाशय) पर कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है। अभी जगह तय नहीं है, लेकिन सरकार और कंपनी के स्तर पर बात चल रही है। छोटे इलाकों में ड्रोन से बारिश करवाने के प्रयोग को आगे बढाने पर रामगढ़ के प्रयोग की सफलता पर ही निर्भर करेगा। दुनिया में सफल रहे हैं ऐसे प्रयोग अमेरिका, रूस, चीन, वियतनाम, यूरोप के कई देश, सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम, साउथ अफ्रीका सहित कई देश क्लाउड सीडिंग तकनीक का प्रयोग कर कृत्रिम बारिश करवाते हैं। क्लाउड सीडिंग का मिलिट्री उद्देश्य से इस्तेमाल करने पर पाबंदी है। अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के वक्त क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल कर मौसम चक्र को प्रभावित किया था। क्या यह तकनीक स्थायी समाधान है या सिर्फ इमरजेंसी उपाय? क्लाउड सीडिंग तकनीक स्थायी समाधान नहीं हो सकता और यह सामान्य बारिश का विकल्प नहीं बन सकती। जब मानसून में बारिश की कमी रह जाती है, उसकी कमी पूरी करने के लिए ही इमरजेंसी के तौर पर इसका प्रयोग किया जा सकता है। इस पर मौसम विभाग से लेकर सरकारी एजेंसियों की कई तरह की पाबंदियां भी रहती हैं। कई तरह के रेगुलेशन हैं। जयपुर में हुए ट्रायल की 2 तस्वीरें... .... जयपुर में कृत्रिम बारिश से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... जयपुर में कृत्रिम बारिश की पहली कोशिश फेल हुई:कंपनी बोली- बादल काफी ऊपर थे, 400 फीट ऊंचाई तक ही ड्रोन उड़ाने की अनुमति है कृत्रिम बारिश कराने वाली कंपनी जेन एक्स एआई के डायरेक्टर अजिंक्या धूमबाड़े ने कहा- मंगलवार को 400 फीट की ऊंचाई तक ड्रोन उड़ाकर डेमो किया गया। पूरी खबर पढ़िए...
Click here to
Read more