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    खबर हटके- ₹2 करोड़ में पुनर्जन्म करवाएगी जर्मन कंपनी:एक कीड़े ने पैदा किया परमाणु खतरा; जानिए ऐसी ही 5 रोचक खबरें

    4 days ago

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    टेक्नोलॉजी की ग्रोथ को देखते हुए अब एक जर्मन कंपनी करीब ₹2 करोड़ में पुनर्जन्म कराने का दावा कर रही है। वहीं अमेरिका में एक कीड़े ने परमाणु खतरा पैदा कर दिया, जिसे अधिकारियों ने नष्ट किया। जर्मनी की एक स्टार्ट-अप कंपनी ने मौत को मात देने का एक बेहद अनोखा तरीका खोजा है। यह कंपनी क्रायो-प्रिजर्वेशन सर्विसेज दे रही है, जिसमें यह वादा किया जाता है कि फ्यूचर में जब टेक्नोलॉजी बढ़ेगी, तो इन फ्रीज लाशों को फिर से जीवित किया जा सकेगा। ₹1.8 करोड़ में पूरा शरीर, ₹67.2 लाख में सिर्फ दिमाग 'टुमारो बायो' नाम की यह कंपनी डेड बॉडी को फ्रीज करने के लिए करीब ₹1.8 करोड़ और सिर्फ ब्रेन को फ्रीज करने के लिए ₹67.2 लाख चार्ज करती है। इस प्रोसेस में बॉडी को माइनस 198 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है, जिससे डिकंपोजीशन प्रोसेस हमेशा के लिए रुक जाती हैं। इसे 'बायोस्टैसिस' की स्थिति कहा जाता है। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, उनका विजन है ‘एक ऐसी दुनिया बनाना है जहां लोग चुन सकें कि वे कब तक जीना चाहते हैं। अब तक टुमारो बायो ने 6 लोगों और 5 पालतू जानवरों का क्रायो-प्रिजर्वेशन किया है। 650 से अधिक व्यक्तियों ने इस सर्विसेज के लिए पेमेंट किया है और अपने फ्रीज होने का इंतजार कर रहे हैं। डेड बॉडी फ्रीज करने का प्रोसेस क्या होता है? यह कंपनी व्यक्ति की मृत्यु के तुरंत बाद क्रायो-प्रिजर्वेशन प्रोसेस शुरू करती है। इसके लिए यूरोपीयन शहरों में स्पेशल एम्बुलेंस डेड बॉडी को स्विट्जरलैंड के मेन सेंटर तक ले जाती हैं। इसके बाद, शरीर को एक अलग स्टील कंटेनर में लिक्विड नाइट्रोजन से भरकर माइनस 198 डिग्री सेल्सियस पर दस दिनों तक रखा जाता है ताकि जरूरी फ्रीजिंग टेम्प्रेचर मेंटेन किया जा सके। अमेरिका में एक पुराने परमाणु हथियार वाले ठिकाने पर रेडियोएक्टिव ततैया (कीड़ा) का घोंसला मिला। इसमें सामान्य से दस गुना ज्यादा खतरनाक रेडिएशन पाया गया है। हालांकि अधिकारियों ने इसे हटा तुरंत खत्म कर दिया और खतरा होने से इनकार किया। यह घोंसला 3 जुलाई को दक्षिण कैरोलिना में सवाना रिवर साइट पर मिला, जो कभी परमाणु बम के लिए प्लूटोनियम बनाता था। अधिकारियों का दावा है कि ये रेडिएशन किसी नए परमाणु रिसाव से नहीं, बल्कि कोल्ड वॉर के समय के पुराने परमाणु उत्पादन के बचे हुए कणों से है। ये कीड़े ज्यादा दूरी तक नहीं उड़ सकते, इसलिए इससे लोगों और पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है। अब इस रिपोर्ट पर सवाना रिवर साइट वॉच नाम के संगठन ने सवाल उठाया है। उनके प्रवक्ता ने कहा, "हमें ये क्यों नहीं बताया जा रहा कि ये रेडिएशन कचरा कहां से आया? वैज्ञानिकों ने आलू के उत्पत्ति को लेकर खुलासा किया कि 90 लाख साल पहले जंगली टमाटर के पौधों और आलू जैसी दिखने वाली प्रजातियों की ब्रीडिंग से आलू का जन्म हुआ था। इस नई खोज के मुताबिक, आलू 'पेटोटा' नाम के एक वंश से संबंधित है। यह वंश 'टमाटर' और 'एट्यूबरोसम' नाम के दो अन्य वंशजों के पूर्वजों के बीच हाइब्रिड मिक्स से बना था। इस मिक्स से जीन का नया कॉम्बिनेशन बना, जिससे ट्यूबर (जमीन के नीचे की गांठें) विकसित हुईं और आलू बना। सबसे पहले ट्यूबर ने एंडीज पर्वत (साउथ अमेरिका) जैसे ठंडे और ड्राई वातावरण में आलू को टिकने और फैलने में मदद की, जिससे आलू की एक नई प्रजाति बन सकी। लाल पांडा, जो भारत के हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला एक बेहद प्यारा और लुप्त होता जानवर है। अब उसके बचाव अभियान को एक बड़ी सफलता मिली है। सिक्किम के गंगटोक स्थित बुलबुली के हिमालयन चिड़ियाघर में 7 साल के लंबे इंतजार के बाद लाल पांडा के बच्चों का जन्म हुआ है। इन नन्हे मेहमानों का जन्म 15 जून, 2025 को हुआ था, जिनका नाम लकी 2 और मिराक रखा गया है। यह चिड़ियाघर के 'लाल पांडा संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम' (जो 1997 में शुरू हुआ था) के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। चिड़ियाघर के डायरेक्टर गुट लेप्चा ने बताया कि दोनों बच्चे बिल्कुल स्वस्थ हैं और उन्हें कड़ी निगरानी में रखा गया है। क्यों जरूरी है लाल पांडा का संरक्षण? लाल पांडा को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की लुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में शामिल किया है। फिलहाल उनकी आबादी 2,500 से भी कम है। वनों की कटाई, अवैध शिकार और क्लाइमेट चेंज की वजह से उनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। यही कारण है कि लाल पांडा के आबादी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। धरती पर अब तक की सबसे लंबी बिजली चमकने का एक नया विश्व रिकॉर्ड बन गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने पुष्टि की है। यह 'मेगाफ्लैश' 829 किलोमीटर तक फैली थी। इसने सात सेकेंड में यह दूरी तय की और पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया। यह बिजली 22 अक्टूबर, 2017 को अमेरिका के 5 राज्यों (टेक्सास, ओक्लाहोमा, अर्कांसस, कंसास, मिसौरी) में चमकी थी। तब इसे पूरी तरह मापा नहीं जा सका था। अब, एक नई स्टडी में सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल करके इसकी पूरी लंबाई का पता चला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तूफान से दूर भी बिजली गिर सकती है। यह खोज दिखाती है कि बिजली कितनी दूर और कितनी तेजी से फैल सकती है। तो ये थी आज की रोचक खबरें, कल फिर मिलेंगे कुछ और दिलचस्प और हटकर खबरों के साथ… खबर हटके को और बेहतर बनाने के लिए हमें आपका फीडबैक चाहिए। इसके लिए यहां क्लिक करें...
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