मंदिर ने BJP को यूपी जिताया, क्या अब बिहार जीतेगी:सीता मंदिर के जरिए मिथिलांचल से शुरुआत, क्या ‘कमंडल’ पर नीतीश भी साथ
12 hours ago

पहले ये दो बयान पढ़िए…
पहला: नीतीश बाबू ने माता सीता की जन्मस्थली पर पुनौराधाम मंदिर और उसके पूरे परिसर का सैकड़ों करोड़ रुपए से विकास किया है। ये मिथिलांचल, बिहार और पूरे देश के भक्तों के लिए आनंद की बात है। -अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री, 8 अगस्त को सीतामढ़ी में दूसरा: सीतामढ़ी आस्था और विश्वास का केंद्र है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अब तक सीतामढ़ी में खुदाई नहीं की है। इस वजह से यहां सीता का जन्मस्थान है, इसका प्रमाण नहीं मिला है। -महेश शर्मा, 12 अप्रैल, 2017 को राज्यसभा में
(BJP नेता महेश शर्मा तब केंद्रीय पर्यटन मंत्री थे, हालांकि वाल्मिकी रामायण के हवाले से उन्होंने जोड़ा कि माता सीता के जन्मस्थान पर कोई सवाल नहीं है।) महेश शर्मा के इस जवाब पर विवाद हो गया। JDU सांसद डॉ. अनिल कुमार सहनी ने राज्यसभा में ही कहा कि ये सीता माता का अपमान है। अब 8 अगस्त, 2025 को गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक साथ सीतामढ़ी के पुनौराधाम में माता जानकी मंदिर का भूमिपूजन किया। सीता मंदिर अयोध्या के राममंदिर की तर्ज पर बनाया जाना है। इस पर 883 करोड़ रुपए खर्च होंगे। मान्यता है कि राजा जनक को यहीं खेत जोतते समय सोने के घड़े में सीता जी मिली थीं। दूसरी ओर, नेपाल के जनकपुर को भी सीता का जन्मस्थान माना जाता है। बिहार में दो महीने बाद चुनाव हैं। इस मंदिर का मिथिलांचल के अलावा पूरे बिहार पर क्या असर पड़ सकता है, इस पर दैनिक भास्कर ने एक्सपर्ट्स, नेताओं और आम लोगों से बात की। लोग बोले- मंदिर बनेगा तो काम मिलेगा, बिजनेस बढ़ेगा
पुनौराधाम आए गौतम गोस्वामी सीतामढ़ी के रहने वाले हैं। वे कहते हैं, ‘ये मंदिर हमारे यहां से 8 किमी दूर बन रहा है। इसके बनने से युवाओं को रोजगार मिलेगा। हम यहां छोटे-छोटे सामान का बिजनेस शुरू कर सकते हैं। इसे राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए।’ सीतामढ़ी की ही किरण गुप्ता कहती हैं, ‘अयोध्याजी में राम मंदिर बन गया, तो सीता मंदिर भी बनना भी जरूरी था। इससे बहुत बदलाव आएगा। सीतामढ़ी पर्यटन से जुड़ जाएगा। इससे कारोबारी मजबूत होंगे। बाहर से लोग आएंगे।’ सूरजभान प्रताप गुप्ता मंदिर बनने से खुश हैं, लेकिन पहले राम मंदिर बनने से गुस्सा भी हैं। वे कहते हैं, ‘मंदिर बनेगा तो विकास बढ़ जाएगा। ये बहुत जरूरी था। हमें तो बहुत खुशी है।' ‘चुनाव से पहले नीतीश के मंडल में कमंडल की भी एंट्री’
सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडे मानते हैं कि BJP एक बार पहले भी बिहार में मंदिर पॉलिटिक्स आजमाने की कोशिश कर चुकी है। इस बार भी BJP मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मंडल पॉलिटिक्स की पिच से हटकर कमंडल के जरिए चुनाव में उतरने की कोशिश में है। अरुण पांडे बताते हैं, ’बिहार में पिछड़ों की आबादी 63% से ज्यादा है। नीतीश कुमार इस बात को अच्छे से समझ गए थे कि अगर उन्हें बिहार में लंबी राजनीति करनी है, तो इसी में पैठ बनानी होगी। यही वजह है कि उन्होंने हमेशा BJP को पीछे रखा।’ वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट इंद्रभूषण बताते हैं, ‘RJD के नेतृत्व में महागठबंधन OBC-EBC और दलित को लामबंद कर चुनाव में पैठ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। BJP के सामने ठीक यही हालात पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी थे।’ ‘जाति की पॉलिटिक्स को धार्मिक ध्रुवीकरण से साधने की कोशिश’
पॉलिटिकल एक्सपर्ट और बीबीसी के जर्नलिस्ट रहे मणिकांत ठाकुर बताते हैं, ’इसमें कोई शक नहीं है कि सीता मंदिर के शिलान्यास का फायदा BJP को मिलेगा। विपक्षी पार्टियां बिहार में जातीय जनगणना और आरक्षण की मांग उठाकर जातियों को बांटना चाह रही हैं।' 'उनकी सबसे बड़ी कोशिश है कि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण न हो पाए। वे इसमें जितना कामयाब होंगे, चुनाव में उन्हें उतना ही फायदा मिलेगा। BJP इस बात को जानती है कि बिना हिंदुओं के ध्रुवीकरण के वे कामयाब नहीं हो सकते। यही असली लड़ाई भी है।’ बिहार में अब तक फेल रही हिंदुत्व की पॉलिटिक्स
ये 1990 की बात है। तब पिछड़ी जातियों के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने वाले वीपी सिंह की सरकार थी। इधर, BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाल रहे थे। धनबाद के रास्ते उनकी रथ यात्रा की बिहार में एंट्री हुई। तब बिहार 1989 में हुए भागलपुर दंगे के असर से उबर रहा था। RJD चीफ लालू प्रसाद यादव नए-नए CM बने थे। आडवाणी गया के रास्ते पटना होते हुए गंगा पार कर उत्तर बिहार के समस्तीपुर पहुंचे। 22 अक्टूबर 1990 को लालू ने आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। आधी रात को उन्हें सर्किट हाउस से गिरफ्तार कर लिया गया। लालू के इस फैसले से दो बड़े मैसेज निकले-
पहला: बिहार में कमंडल (धर्म) नहीं मंडल (जाति) की राजनीति चलेगी।
दूसरा: मंडल के साथ उन्होंने मुस्लिमों को भी अपने खेमे में कर लिया। 1990 के बाद बिहार में मंडल की जड़ें इतनी गहराई तक घुसीं कि धर्म की राजनीति जगह नहीं बना पाई। इस दौरान BJP नीतीश के सहारे सरकार में रही, लेकिन कभी धर्म वाली पॉलिटिक्स नहीं कर पाई। अब नीतीश कुमार अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव में हैं। यही उनका सबसे खराब दौर है। उनके पास सिर्फ 43 विधायक हैं। BJP ने सीतामढ़ी में सीता माता की मंदिर के सहारे अपने एजेंडे की शुरुआत कर दी। धर्म की सियासत से BJP ने यूपी में मंडल को हराया। अब उसी फॉर्मूले को धीरे-धीरे बिहार में लागू किया जा सकता है। BJP का अपने गढ़ में मंदिर का प्रयोग, नुकसान का खतरा कम
मिथिलांचल को NDA खासकर BJP का गढ़ माना जाता है। मिथिलांचल के 6 जिलों सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी समस्तीपुर और बेगूसराय में विधानसभा की 46 सीटें हैं। 2020 के चुनाव में 46 में से 31 सीटें NDA ने जीती थीं। 19 सीटों पर BJP और 12 सीटों पर JDU को जीत मिली। महागठबंधन के सिर्फ 15 कैंडिडेट जीते। पॉलिटिकल एक्सपर्ट मणिकांत ठाकुर बताते हैं, ’मिथिलांचल में लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि यहां भव्य मंदिर बने। BJP इस बात को अच्छे से जानती है कि इस प्रयोग का कोई नेगेटिव असर नहीं होना है। हां, विपक्ष को इसकी चिंता जरूर हो सकती है कि इन उपायों से BJP खुद को मजबूत न कर लें।’ मणिकांत ठाकुर आगे बताते हैं, ’कभी भी चुनाव में सिर्फ एक फैक्टर प्रभावी नहीं होता। BJP भी इस बात को अच्छे से जानती है। चुनाव आते-आते कई ऐसे हालात बन जाते हैं, जिनका असर चुनाव पर पड़ता है। राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम जैसे मुद्दे होते हैं, जिसका असर चुनाव पर होता है। मंदिर निर्माण के बाद हिंदू वोट में BJP को थोड़ी मजबूती जरूर मिल जाएगी।’ ‘मंदिर हिंदुओं के लिए आस्था और BJP के लिए मुफीद’
अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ के सीनियर असिस्टेंट एडिटर अमरनाथ तिवारी बताते हैं, ’हिंदुओं का एक बड़ा तबका है, जो मंदिर से ज्यादा प्रभावित होता है। यही वजह है कि यूपी में राम मंदिर के बाद BJP ने बिहार में पुनौराधाम में सीता मंदिर के शिलान्यास को धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर बड़ा इवेंट बनाया है। पुनौराधाम सीता की जन्मस्थली मानी जाती है, जबकि केंद्र सरकार पहले इससे इनकार कर चुकी है।’ ‘12 अप्रैल, 2017 को BJP के राज्यसभा सांसद प्रभात झा ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा था कि पुनौरा धाम में सीता जन्मस्थली को लेकर कोई विवाद नहीं है, तो यहां मंदिर क्यों नहीं बनाया जा रहा है, सीता माता के जन्म स्थल से जुड़े क्या प्रमाण हैं? इसके जवाब में तब केंद्रीय पर्यटन मंत्री रहे महेश शर्मा ने जवाब दिया था,’ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अब तक सीतामढ़ी जिले में कोई उत्खनन नहीं किया है। इसलिए सीतामढ़ी को सीता का जन्म स्थान बताने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।’ ‘अब अचानक से इलेक्शन से पहले मंदिर का शिलान्यास करना BJP के लिए कितना फायदेमंद साबित होगा, ये कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी। हां, BJP ये साबित करने की कोशिश में जरूर जुट गई है कि वो बिहार में भी हिंदुत्व की पॉलिटिक्स करेगी।’ नेपाल के लोगों को डर- जनकपुर आने वाले श्रद्धालु कम हो जाएंगे
पुनौराधाम में बनने वाले मंदिर पर दैनिक भास्कर ने नेपाल में भी लोगों से बात की। जनकपुर के रहने वाले सुनील चौधरी कहते हैं, ‘बिहार के सीतामढ़ी में बन रहे मंदिर पर जनकपुर में दो तरह की बातें हो रही हैं। संत समाज इसे सही मान रहा है क्योंकि धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से सीतामढ़ी मिथिला राज्य का ही हिस्सा था। ऐसा माना जाता है कि सीताजी वहीं राजा जनक को मिली थीं।’ ‘दूसरे जनकपुर के लोग हैं, जो सोच रहे हैं कि अगर सीतामढ़ी में माता का मंदिर बनेगा, तो नेपाल में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु कम हो जाएंगे। भारत में पहली बार सीता माता के विशाल मंदिर पर काम हुआ है। ऐसा अब तक जनकपुर में भी नहीं हो पाया। यहां मंदिर तो है, लेकिन इसकी लोकप्रियता बहुत सीमित रह गई है।’ नेपाल सुदूर पश्चिम सीट के विधायक शिवा सिंह ओली सीतामढ़ी मंदिर का विरोध करते हैं। वे सरकार चला रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML) में है। शिवा कहते हैं, ‘सीतामढ़ी में मंदिर बना तो हम अपने बच्चों के सामने गलत इतिहास पेश करेंगे। पूरी दुनिया जानती है कि मां सीता नेपाल के जनकपुर में पैदा हुई थीं। बिहार में उनका जन्मस्थली मंदिर बनाने का कोई औचित्य नहीं है।’ पॉलिटिकल पार्टियां क्या कह रहीं…
JDU: सीतामढ़ी को सरकार से इससे बड़ा दान कुछ नहीं मिल सकता
मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में पहुंचे सीतामढ़ी से JDU सांसद देवेश चंद्र ठाकुर कहते हैं, ’सीतामढ़ी के विकास के लिए सरकार की तरफ से इससे बड़ा दान कुछ हो ही नहीं सकता है। भगवान राम के स्थापित होने के तुरंत बाद अब मां सीता के स्थापित होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। विपक्षी पार्टियां भगवान को नहीं मानती हैं। मां सीता का प्राकट्य यहीं हुआ था। इसमें कोई पॉलिटिक्स नहीं देखना चाहिए।’ BJP: डबल इंजन की सरकार की वजह से राम मंदिर और जानकी मंदिर बना
BJP के विधायक और शहरी विकास मंत्र जीवेश मिश्रा कहते हैं, ‘भगवान राम के मंदिर के बाद अब ससुराल भी बन रहा है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी। मिथिला धन्य हो गया। डबल इंजन की सरकार की वजह से ही ये संभव हो पाया है।’ RJD: मंदिर निर्माण की मंजूरी सबसे पहले हमने दी
पुनौराधाम में माता सीता के जन्मस्थान के डेवलपमेंट के लिए सितंबर, 2023 में कैबिनेट ने 72 करोड़ रुपए मंजूर किए थे। तब महागठबंधन की सरकार थी। नीतीश कुमार CM थे और RJD और कांग्रेस भी सरकार का हिस्सा थीं। तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम थे। अब तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। उन्होंने मंदिर के शिलान्यास पर कहा, बिहार जैसे गरीब राज्य के 883 करोड़ रुपए सरकार पुनौराधाम में माता जानकी मंदिर में लगा रही है, तो फिर एक गुजराती कैसे उसका श्रेय लेगा।' 'पैसा गरीब का और उसका इंप्रेशन ऐसा दिया जा रहा है जैसे केंद्र सरकार ही सब करा रही है। उन्होंने फूटी कौड़ी नहीं दी है। सच ये है कि हमारे 17 महीने के कार्यकाल में सबसे पहले हमने पुनौरा धाम का दौरा कर कैबिनेट में निर्माण की मंजूरी दिलाई थी।’
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