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    राजस्थान में सिख स्टूडेंट ने हाईकोर्ट में PIL दाखिल की:ककार पहनने पर न्यायिक परीक्षा से रोका, केंद्र-राज्य सरकार से मांगा जवाब

    7 hours ago

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    राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा के दौरान सिख छात्रा अरमानजोत कौर को ककार पहनने की वजह से परीक्षा न देने देने के मामले को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई है। यह याचिका शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और खुद पीड़ित स्टूडेंट की ओर से दायर की गई है। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश शील नागु और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार समेत सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में पूरे देश में सिखों द्वारा धारण किए जाने वाले ‘किरपान’ को लेकर स्पष्ट और एकसमान दिशा-निर्देश बनाने की मांग की गई है, ताकि अमृतधारी सिखों के धार्मिक अधिकारों का कहीं भी उल्लंघन न हो सके। याचिका में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किरपान सिख धर्म के पांच ककारों में से एक है, जिसे धारण करना धार्मिक रूप से अनिवार्य है। याचिका में अनुच्छेद 25 का हवाला याचिका में संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, और किरपान धारण करना सिख धर्म की आस्था का अभिन्न हिस्सा है। याचिका में विशेष रूप से उस घटना का उल्लेख किया गया है, जो 23 जून 2024 को राजस्थान में घटी। सह-याचिकाकर्ता एडवोकेट अरमानजोत कौर, जो एक अमृतधारी सिख हैं, राजस्थान न्यायिक सेवा (RJS) की प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने जोधपुर गई थीं। लेकिन जब वह परीक्षा केंद्र पर पहुंचीं, तो प्रवेश द्वार पर मौजूद एक न्यायिक अधिकारी ने उन्हें परीक्षा भवन में प्रवेश करने से रोक दिया, क्योंकि उन्होंने किरपान धारण किया हुआ था। अरमानजोत के समझाने पर भी किसी ने नहीं सुनी अरमानजोत कौर ने अधिकारियों को कई बार बताया कि किरपान एक धार्मिक प्रतीक है और इसे धारण करना उनके धर्म का हिस्सा है, जिसे भारतीय संविधान द्वारा संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास परीक्षा में शामिल होने की सभी आवश्यक डॉक्यूमेंट थे, लेकिन केवल किरपान पहनने के कारण उन्हें बाहर रोक दिया गया। इसके बाद उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट के प्रशासनिक अधिकारी (न्यायिक) से मिलकर लिखित शिकायत भी दर्ज करवाई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली और अंततः उन्हें परीक्षा देने से वंचित रहना पड़ा। SGPC के सहयोग से याचिका दायर SGPC और एडवोकेट कौर ने मिलकर यह याचिका दायर की, जिसमें मांग की गई कि भारत के सभी राज्यों में किरपान को लेकर स्पष्ट, एक समान और प्रभावी नियम बनाए जाएं ताकि किसी भी सिख नागरिक को इस प्रकार के भेदभाव का सामना न करना पड़े, खासकर जब वह अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत किसी शैक्षणिक, प्रशासनिक या सार्वजनिक स्थान पर उपस्थित हो। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख जल्दी घोषित की जाएगी। यह मामला न केवल धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि संवैधानिक मूल्यों और व्यावहारिक नियमों में कैसे संतुलन स्थापित किया जाए। 8 दिन पहले भी आया ऐसा ही मामला तकरीबन 8 दिन पहले भी पंजाब के तरनतारन जिले से राजस्थान में जयपुर की पूर्णिमा यूनिवर्सिटी में आयोजित न्यायिक सेवा परीक्षा (PCS-J) में शामिल होने पहुंची एक सिख स्टूडेंट को उसके धार्मिक प्रतीकों (ककार) की वजह से परीक्षा केंद्र में जाने से रोक दिया गया था। स्टूडेंट का आरोप है कि सिक्योरिटी स्टाफ ने उससे ककार उतारने के लिए कहा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इस कारण स्टूडेंट परीक्षा केंद्र के अंदर नहीं जा सकी, जिससे उसका एग्जाम छूट गया।
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