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    सीमेंट कंपनी को जमीन देने पर गुवाहाटी हाईकोर्ट की आपत्ति:जज बोले- 3000 बीघा जमीन प्राइवेट कंपनी को दे दी, ये कैसा मजाक

    2 hours ago

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    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम के दीमा हसाओ में माइनिंग के लिए एक प्राइवेट सीमेंट कंपनी (महाबल सीमेंट्स) को 3000 बीघा जमीन दिए जाने पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा- दीमा हसाओ संविधान की छठी अनुसूची के तहत आता है, जहां जनजातीय अधिकारों को पहले रखा जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कुमार मेधी ने वकील से पूछा- 3000 बीघा, पूरा जिला। ये क्या हो रहा है। हम जानते हैं कि जमीन कितनी बंजर है। यह कैसा फैसला है। क्या यह कोई मजाक है या कुछ और। इसके बाद सीमेंट कंपनी के वकील ने कोर्ट को बताया कि जमीन बंजर थी और कंपनी चलाने के लिए इसकी जरूरत थी। इस पर जस्टिस मेधी ने कहा- यह आपकी जरूरत मुद्दा नहीं, जनहित मुद्दा है। गुवाहाटी हाईकोर्ट ग्रामीणों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। 12 अगस्त की सुनवाई का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें जस्टिस संजय को हैरानी जताते हुए देखा जा सकता है। मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी। कंपनी का दावा- 30 साल के पट्‌टे पर मिली जमीन महाबल सीमेंट्स ने अपनी याचिका में उपद्रवियों से सुरक्षा की मांग की। सीमेंट कंपनी की तरफ से एडवोकेट जी गोस्वामी ने दलीलें रखीं। उन्होंने कहा- हमें किसी की जमीन लेने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम एक सीमेंट कंपनी हैं। टेंडर के जरिए हमें 30 साल तक खनन का पट्टा मिला है। आदिवासियों की तरफ से पहुंचे एडवोकेट एआई कथार और ए रोंगफर ने कहा कि ग्रामीणों को उनकी जमीन से बेदखल नहीं किया जाना चाहिए। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि वह उस प्रक्रिया की जांच करेगा जिसके तहत जमीन आवंटित की गई थी। हाईकोर्ट ने टेंडर का रिकॉर्ड मांगा अदालत ने सीमेंट कंपनी के वकील की दलीलों पर ध्यान नहीं दिया। साथ ही 3000 बीघा भूमि के इतने बड़े हिस्से को एक कारखाने को आवंटित करने की नीति वाले रिकॉर्ड मांगे। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि दीमा हसाओ जिले में उमरांगसो है, जिसे पर्यावरण का हॉटस्पॉट माना जाता है। जिसमें गर्म झरने हैं। यहां प्रवासी पक्षी और वन्यजीव भी आते हैं। ये खबर भी पढ़ें... दिल्ली HC बोला- महिला का रोना दहेज उत्पीड़न साबित नहीं करता: बहन ने कहा था- फोन पर रो रही थी; पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण निमोनिया निकला दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा- सिर्फ इसलिए कि कोई महिला रो रही थी, इसे दहेज उत्पीड़न का मामला नहीं माना जा सकता। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें पति और उसके परिवार को दहेज उत्पीड़न के आरोपों से बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी। पढ़ें पूरी खबर...
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