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    वन नेशन वन इलेक्शन- पूर्व CJI खन्ना ने सुझाव दिया:बोले- आयोग को चुनाव टालने का हक अप्रत्यक्ष राष्ट्रपति शासन जैसा

    3 hours ago

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    भारत के पूर्व CJI संजीव खन्ना ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ विधेयक की समीक्षा कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उन्होंने कहा कि किसी प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता यह नहीं दर्शाती कि उसके प्रावधान वांछनीय या आवश्यक हैं। जस्टिस खन्ना ने समिति को बताया कि संविधान संशोधन विधेयक देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है। भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति के साथ विचार साझा करने वाले अधिकांश विशेषज्ञों ने विधेयक को असंवैधानिक मानने से इनकार किया, लेकिन प्रावधानों पर सवाल उठाए। जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग को चुनाव टालने का अधिकार मिल गया तो यह अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन जैसा होगा। इसका मतलब होगा कि केंद्र सरकार राज्यों का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है। उन्होंने कहा कि 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव हुए थे, वह सिर्फ संयोग था, न कि संविधान का आदेश। पूर्व CJI खन्ना से पहले पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस यूयू ललित और पूर्व CJI रंजन गोगोई भी संसदीय समिति के सामने अपनी राय दे चुके हैं। एक्सपर्ट्स ने कहा था- वन नेशन वन इलेक्शन से GDP 1.5% तक बढ़ सकती है वन नेशन वन इलेक्शन पर 30 जुलाई को संसद भवन एनेक्सी में JPC की बैठक हुई थी। इसमें 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और इकोनॉमी की प्रोफेसर डॉ. प्राची मिश्रा ने अपनी राय रखी थी। दोनों ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने को आर्थिक रूप से फायदेमंद बताया। उन्होंने कहा कि इससे चुनावों के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। अपने साझा प्रेजेंटेशन में दोनों एक्सपर्ट्स ने बताया कि 2023-24 के आंकड़ों के हिसाब से GDP में यह बढ़ोतरी 4.5 लाख करोड़ रुपए की होगी। हालांकि, चुनावों के बाद ज्यादा खर्च होने से राजकोषीय घाटा (सरकार का खर्च) भी करीब 1.3 प्रतिशत बढ़ सकता है। अब तक JPC की 6 बैठकें हुईं, उनमें क्या हुआ, पढ़िए... पहली बैठक- 8 जनवरी 8 जनवरी को JPC की पहली बैठक हुई थी। इसमें सभी सांसदों को 18 हजार से ज्यादा पेज की रिपोर्ट वाली एक ट्रॉली दी गई थी। इसमें हिंदी और अंग्रेजी में कोविंद समिति की रिपोर्ट और अनुलग्नक की 21 कॉपी शामिल है। इसमें सॉफ्ट कॉपी भी शामिल है। पूरी खबर पढ़ें... दूसरी बैठक- 31 जनवरी 129वें संविधान संशोधन बिल पर 31 जनवरी 2025 को दूसरी बैठक हुई थी। इसमें कमेटी ने बिल पर सुझाव लेने के लिए स्टेक होल्डर्स की लिस्ट बनाई। इसमें सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और राज्य सरकारें शामिल हैं। पूरी खबर पढ़ें... तीसरी बैठक- 25 फरवरी 25 फरवरी को कमेटी की तीसरी बैठक हुई। इसमें पूर्व चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, लॉ कमीशन के पूर्व अध्यक्ष ऋतुराज अवस्थी समेत 4 लॉ एक्सपर्ट्स कमेटी के सामने सुझाव दिए। पूरी खबर पढ़ें... चौथी बैठक- 26 मार्च जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) की चौथी बैठक में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल, जेपीसी सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा समेत और अन्य लोग पहुंचे थे। अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने JPC से कहा था- प्रस्तावित कानूनों में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है। एक साथ चुनाव कराने के विधेयक संविधान की किसी भी विशेषता को प्रभावित नहीं करते। ये कानून की दृष्टि से सही हैं। पूरी खबर पढें... पांचवीं बैठक- 11 जुलाई पूर्व CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 11 जुलाई की बैठक में बिल का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराने के प्रस्ताव को लागू करने वाला बिल संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित नहीं करता। उन्होंने कहा कि बिल में चुनाव आयोग (EC) की शक्तियों से संबंधित कुछ प्रावधानों पर बहस करने की जरूरत है। पूरी खबर पढ़ें... छठी बैठक- 30 जुलाई 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और इकोनॉमी की प्रोफेसर डॉ. प्राची मिश्रा ने बैठक में अपनी राय रखी। उन्होंने बार-बार चुनाव के नुकसान बताए। उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन पर्यटन और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ता है। प्रवासी मजदूर अक्सर अपने घर लौट जाते हैं। इससे प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है। पूरी खबर पढ़ें... एक देश-एक चुनाव क्या है... भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। एक साथ चुनाव करवाने के 4 बड़े फायदे- रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में एकसाथ चुनाव करवाए जाने के पक्ष में ये तर्क दिए हैं... 1. शासन में निरंतरता आएगी: देश के विभिन्न भागों में चुनावों के चल रहे चक्रों के कारण राजनीतिक दल, उनके नेता और सरकारों का ध्यान चुनावों पर ही रहता है। एक साथ चुनाव करवाने से सरकारों का फोकस विकासात्मक गतिविधियों और जनकल्याणकारी नीतियों के क्रियान्वयन पर केंद्रित होगा। 2. अधिकारी काम पर ध्यान दे पाएंगे: चुनाव की वजहों से पुलिस सहित अनेक विभागों के पर्याप्त संख्या में कर्मियों की तैनाती करनी पड़ती है। एकसाथ चुनाव कराए जाने से बार बार तैनाती की जरूरत कम हो जाएगी, जिससे सरकारी अधिकारी अपने मूल दायित्यों पर फोकस कर पाएंगे। 3. पॉलिसी पैरालिसिस रुकेगा: चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के क्रियान्वयन से नियमित प्रशासनिक गतिविधियां और विकास कार्य बाधित हो जाते हैं। एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता के लंबे समय तक लागू रहने की अवधि कम होगी, जिससे पॉलिसी पैरालिसिस कम होगा। 4. वित्तीय बोझ में कमी आएगी: एकसाथ चुनाव कराने से खर्च में काफी कमी आ सकती है। जब भी चुनाव होते हैं, मैनपॉवर, उपकरणों और सुरक्षा उपायों के प्रबंधन पर भारी खर्च होता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों को भी काफी खर्च करना पड़ता है। ये आंकड़े करते हैं एकसाथ चुनावों का समर्थन • 2019-2024 के दौरान भारत में 676 दिन आचार संहिता लागू रही, यानी हर साल करीब 113 दिन। • अकेले 2024 के लोकसभा चुनावों में ही एक अनुमान के मुताबिक करीब 1 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। ------------------------------------------ मामल से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... एक देश-एक चुनाव संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं, पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने संसदीय समिति को लिखित राय दी पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है।' हालांकि, प्रस्तावित बिल में चुनाव आयोग (ECI) को दी जाने वाली शक्तियों पर चिंता उन्होंने जताई है। पूरी खबर पढ़ें...
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