सुप्रीम कोर्ट बोला-राष्ट्रपति का कोर्ट से सलाह मांगना गलत नहीं:हम राय बदल सकते, फैसला नहीं; प्रेसिडेंट-गवर्नर के फैसले लेने की डेडलाइन का मामला
17 hours ago

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आर्टिकल 143 के तहत कोर्ट से राय मांगना गलत नहीं है। मुर्मू ने मई में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी कि क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल विधेयकों पर फैसला लेने में अनिश्चितकाल तक देरी कर सकते हैं या कोई डेडलाइन तय की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई समेत 5 जजों की बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति सलाहकारी अधिकारिता (एडवाइजरी ज्यूरिडिक्शन) में बैठी है, न कि अपील अधिकारिता (अपीलेट ज्यूरिस्डिक्शन) में। कोर्ट यह राय दे सकता है कि कोई फैसला सही नहीं है, लेकिन इससे पुराना फैसला अपने आप खत्म नहीं हो जाएगा। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक पुराने मामले का हवाला देते हुए कहा कि सलाहकारी अधिकार क्षेत्र में भी कोर्ट किसी फैसले को रद्द कर सकता है। जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा, 'राय को बदला जा सकता है, फैसला नहीं।' कोर्ट रूम लाइव... अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी: हमारे पास तमिलनाडु वाले फैसले के संबंधित पैराग्राफ हैं। CJI गवई: आपके मुताबिक कहां पर संविधान में संशोधन कर दिया गया है? उस फैसले में अंतिम निष्कर्ष क्या है? अटॉर्नी जनरल: मैं वह पढ़कर सुनाऊंगा। मैं सिर्फ 3-4 मुद्दों तक ही सीमित रहना चाहता हूं, जिनमें बताया गया है कि आर्टिकल 200 में कैसे बदलाव आ गया है। अटॉर्नी जनरल: आर्टिकल 200 को इस तरह नहीं पढ़ा जा सकता कि वह राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह और सहयोग से बंधे रहने के लिए बाध्य करे। अटॉर्नी जनरल: नतीजा यह निकाला गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहयोग से बंधे हैं। अटॉर्नी जनरल: राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित क्यों नहीं की गई? CJI: पैराग्राफ 522 में कहा गया है कि ऐसे स्पष्ट उदाहरण हैं जहां राज्यपाल ने उचित उदासीनता दिखाई है। जस्टिस नरसिम्हा: बहुत गंभीर स्थिति में कोर्ट को दखल देना पड़ा, क्योंकि मामला लंबे समय से लंबित था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसी शपथ लेते हैं जिसमें वे न सिर्फ संविधान का पालन करेंगे, बल्कि उसकी रक्षा भी करेंगे। सॉलिसिटर जनरल: विधेयक को विधान परिषद में वापस भेजने का कोई प्रावधान नहीं था। सॉलिसिटर जनरल: गवर्नर जनरल और क्राउन (ब्रिटिश शासन) के लिए समयसीमा तय थी। जब बीएन राउ ने स्वतंत्र भारत के लिए बिल तैयार किया था, तो उन्होंने इसी आधार पर इसका ढांचा बनाया था। सॉलिसिटर जनरल: इसका मकसद उन्हें (राज्यपाल/राष्ट्रपति को) बांध देना नहीं था। राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 पूछे थे राष्ट्रपति ने 15 मई को 5 पन्नों के अपने रेफरेंस में सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यह मामला पूरे देश को प्रभावित करेगा। 8 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने की समयसीमा तय की थी यह मामला सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को रोके नहीं रख सकते और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी। गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स 1. बिल पर फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं। 2. ज्यूडिशियल रिव्यू होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा। अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा। 3. राज्य सरकार को राज्यपाल को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे। 4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी। विवाद पर अब तक क्या हुआ... 17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। धनखड़ ने कहा था- "अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।" पूरी खबर पढ़ें... 18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।' सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- 'लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।' पूरी खबर पढ़ें... 8 अप्रैल: विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। पूरी खबर पढ़ें...
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