Search…

    Saved articles

    You have not yet added any article to your bookmarks!

    Browse articles
    Select News Languages

    GDPR Compliance

    We use cookies to ensure you get the best experience on our website. By continuing to use our site, you accept our use of cookies, Privacy Policies, and Terms of Service.

    SC ने पूछा- राष्ट्रपति ने सलाह मांगी तो दिक्कत क्या:सरकार बोली- क्या कोर्ट संविधान दोबारा लिख सकती है; राष्ट्रपति-राज्यपाल के फैसलों की डेडलाइन का मामला

    20 hours ago

    1

    0

    सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को राष्ट्रपति और राज्यपालों के बिलों पर हस्ताक्षर करने के लिए डेडलाइन लागू करने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने पूछा, 'जब खुद राष्ट्रपति ने राय मांगी है तो इसमें दिक्कत क्या है? क्या आप वाकई इसे चुनौती देना चाहते हैं। बेंच ने कहा कि कोर्ट इस मामले में सलाहकारी अधिकार-क्षेत्र में बैठी है, यानी अभी यह कोई अंतिम आदेश नहीं बल्कि केवल राय देने की प्रक्रिया है। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 वाले फैसले पर कहा कि क्या अदालत संविधान को फिर से लिख सकती है? कोर्ट ने गवर्नर और राष्ट्रपति को आम प्रशासनिक अधिकारी की तरह देखा, जबकि वे संवैधानिक पद हैं। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'संविधान सभा ने जानबूझकर गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा नहीं रखी थी।' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु मामले में दखल इसलिए देना पड़ा क्योंकि गवर्नर लंबे समय तक बिलों पर बैठे रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया रुक गई। अब अदालत तय करेगी कि राष्ट्रपति और गवर्नर की शक्तियों पर उसकी व्याख्या कितनी लागू होगी। CJI बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर बेंचच में आज केरल और तमिलनाडु सरकार की शुरुआती आपत्तियों पर सुनवाई हुई। दोनों राज्यों का उनका कहना है कि राष्ट्रपति ने जो सवाल उठाए हैं, उनमें से ज्यादातर का जवाब पहले ही तमिलनाडु वाले फैसले में मिल चुका है सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी। वहीं, केरल सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल और तमिलनाडु की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी शामिल हुए। तमिलनाडु से शुरू हुआ था विवाद... ये मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे। कोर्ट रूम LIVE... पहले बात: केरल बनाम सुप्रीम कोर्ट... सीनियर एडवोकेट वेणुगोपाल: राष्ट्रपति ने जो सवाल भेजे हैं, वे पहले ही तमिलनाडु केस में कवर हो चुके हैं। कोर्ट पहले दिए गए फैसले से बंधा हुआ है। CJI गवई: क्या 5 जजों की बेंच दो जजों की बेंच के फैसले से बंधी रहेगी। सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल: जब तक आप उसे पलट नहीं देते। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी: हमारे पास तमिलनाडु वाले फैसले के संबंधित पैराग्राफ हैं। CJI गवई: आपके मुताबिक, कहां पर संविधान में संशोधन कर दिया गया है। उस फैसले में अंतिम निष्कर्ष क्या है। अब तमिलनाडु बनाम सुप्रीम कोर्ट... सीनियर एडवोकेट सिंघवी: राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए सवालों में से सिर्फ तीन को छोड़कर बाकी सभी सवालों पर पहले ही जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने फैसले में साफ जवाब दे दिए हैं। CJI गवई: संविधान पीठ राष्ट्रपति के संदर्भ पर विचार कर रही है, न कि तमिलनाडु केस पर। सीनियर सिंघवी: लेकिन यह एक ऐसा मामला बन गया है कि बेंच तमिलनाडु वाले फैसले को प्रभावित कर सकती है। इसके बाद, केंद्र सरकार बनाम सुप्रीम कोर्ट... सॉलिसिटर जनरल मेहता: पहली बार राष्ट्रपति को लगा है कि संविधान के कामकाज में टकराव पैदा हुई है और आगे भी हो सकता है, क्योंकि इस पर कोई स्पष्ट न्यायिक फैसला नहीं आया है। आर्टिकल 143 कोर्ट को किसी खास फैसले पर विचार करने से नहीं रोकता। यह तो सुप्रीम कोर्ट ने खुद तय कर लिया है कि जब राष्ट्रपति से सलाह मांगी जाए, तब हम यह नहीं देखेंगे कि कोई फैसला सही था या गलत। लेकिन 2G केस में कोर्ट ने कहा था कि ऐसा करना भी संभव है। राष्ट्रपति खुद कह रहे हैं कि एक संवैधानिक समस्या खड़ी हो गई है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसे देखना चाहिए। अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी: नतीजा यह निकाला गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहयोग से बंधे हैं। राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित क्यों नहीं की गई? CJI गवई: पैराग्राफ 522 में कहा गया है कि ऐसे साफ उदाहरण हैं, जहां राज्यपाल ने जरूरी काम में जानबूझकर देर या लापरवाही दिखाई है। जस्टिस नरसिम्हा: बहुत गंभीर स्थिति में कोर्ट को दखल देना पड़ा, क्योंकि मामला लंबे समय से लंबित था। सॉलिसिटर जनरल मेहता: गवर्नर जनरल और क्राउन (ब्रिटिश शासन) के लिए समयसीमा तय थी। जब बीएन राव ने स्वतंत्र भारत के लिए बिल तैयार किया था, तो उन्होंने इसी आधार पर इसका ढांचा बनाया था। सॉलिसिटर जनरल मेहता: इसका मकसद उन्हें (राज्यपाल/राष्ट्रपति को) बांध देना नहीं था। जस्टिस नरसिम्हा: अप्रैल वाले फैसले में बेंच ने तमिलनाडु केस में दखल इसलिए दिया था क्योंकि बिल लंबे समय से राज्यपाल के पास अटके हुए थे। राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 पूछे थे राष्ट्रपति ने 15 मई को 5 पन्नों के अपने रेफरेंस में सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यह मामला पूरे देश को प्रभावित करेगा। 8 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने की समयसीमा तय की थी यह मामला सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को रोके नहीं रख सकते और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी। गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स 1. बिल पर फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं। 2. ज्यूडिशियल रिव्यू होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा। अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा। 3. राज्य सरकार को राज्यपाल को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे। 4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी। विवाद पर अब तक क्या हुआ... 17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। धनखड़ ने कहा था- "अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।" पूरी खबर पढ़ें... 18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।' सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- 'लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।' पूरी खबर पढ़ें... 8 अप्रैल: विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। पूरी खबर पढ़ें...
    Click here to Read more
    Prev Article
    महाराष्ट्र चुनाव- वोटर्स कम होने वाला दावा गलत:CSDS डायरेक्टर ने पोस्ट डिलीट की, माफी मांगी; कांग्रेस ने इसी डेटा से EC पर आरोप लगाए
    Next Article
    मुंबई में लगातार बारिश से सड़कें डूबीं, घर-दुकानों में पानी:14 ट्रेन कैंसिल, 250 फ्लाइट्स लेट; महाराष्ट्र में दो दिन में 14 मौतें

    Related Politics Updates:

    Comments (0)

      Leave a Comment