धराली त्रासदी, एक्सपर्ट बोले-देवदार के पेड़ आपदा रोक सकते थे:कभी एक वर्गकिमी में 500 पेड़ थे, बिल्डिंग और परियोजनाओं के चलते 200-300 पेड़ बचे
17 hours ago

उत्तरकाशी के धराली में हुए हादसे को देवदार के पेड़ रोक सकते थे। हिमालय पर कई रिसर्च बुक लिख चुके प्रोफेसर शेखर पाठक बताते हैं कि कभी उत्तराखंड का उच्च और ट्रांस हिमालय (समुद्र तल से 2000 मीटर से ऊपर का क्षेत्र) इसी पेड़ के जंगलों से भरा था। एक वर्ग किलोमीटर में औसतन 400-500 देवदार पेड़ थे। देवदार पेड़ों की सबसे ज्यादा तादाद आपदाग्रस्त धराली से ऊपर गंगोत्री वाले हिमालय में थी। फिर चाहे बादल फटे या लैंडस्लाइड हो, देवदार मलबा-पानी नीचे नहीं आने देते थे। लेकिन 1830 में इंडो-अफगान युद्ध से भागे अंग्रेज सिपाही फैडरिक विल्सन ने हर्षिल पहुंचकर देवदार को काटने का जो दौर शुरू किया, वो आज भी बंद नहीं हो पाया। प्रोफेसर पाठक ने कहते हैं कि आज देवदार काटकर बिल्डिंग बन गईं, कई प्रोजेक्ट शुरू हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इस इलाके के एक वर्ग किमी में औसतन 200-300 पेड़ ही हैं, वो भी नए और कमजोर। धराली की तबाही उसी का परिणाम है। गांव में जिस रास्ते से तबाही नीचे आई, वहां देवदार का घना जंगल था। लेकिन वो जंगल तबाह हो चुका है। उत्तरकाशी जिले के धराली में 5 अगस्त को दोपहर 1.45 बजे बादल फट गया था। खीर गंगा नदी में बाढ़ आने से 34 सेकेंड में धराली गांव जमींदोज हो गया था। अब तक 5 मौतों की पुष्टि हो चुकी है। 100 से 150 लोग लापता हैं, वे मलबे में दबे हो सकते हैं। 1000 से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया गया है। धराली में हुए हादसे को इस तस्वीर से समझें... हिमालयवासी देवदार को भगवान की तरह पूजते हैं
प्रोफेसर शेखर पाठक बताते हैं कि उत्पत्ति के बाद हिमालय की मजबूती में देवदार ने सबसे अहम किरदार निभाया, क्योंकि इसका जंगल काफी घना होता है। इसके नीचे के हिस्से में बांज जैसी घनी झाड़ियां होती है। यह एक सिस्टम है, जो भूधंसाव या बादल फटने पर भी हिमालय की मिट्टी को जकड़ कर रखता है। इसलिए हिमालयवासी इसे भगवान की तरह पूजते हैं। लेकिन 19वीं सदी में इसे ही बेरहमी से काटने का जो दौर विल्सन ने शुरू किया, वो आज भी जारी है। मैप से समझिए घटनास्थल को... भूगर्भ वैज्ञानिक बोले- हादसे वाले इलाके में कभी देवदार पेड़ थे वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट ने अपने शोधपत्र में बताया है कि जहां अभी आपदा आई, धराली का वो इलाका ग्लेशियर नदी के बीचों-बीच था। वहां देवदार भी थे। ग्लेशियर से जब पानी निकलता है तो नीचे डाउन स्ट्रीम में वो अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लेकर बहता है। प्रोफेसर बिष्ट ने बताया ये मिट्टी बहुत उपजाऊ है। इसलिए धराली समेत उच्च हिमालय के तमाम इलाकों में सबसे पहले यहां जंगल बने। फिर लोगों ने इन्हें काटकर खेत बना लिए। सड़क पहुंची तो खेतों पर बाजार-होटल बन गए। धराली का मूल गांव तो आज भी महफूज है, लेकिन बाजार-होटल खत्म हो गए। धराली में गांवों को हटाकर फिर से जंगल विकसित करना चाहिए वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर एसपी सती बताते हैं कि अभी भी वक्त है, वहां से गांवों को हटा लेना चाहिए और जंगलों को नए सिरे से विकसित कर लेना चाहिए। उत्तराखंड में ही दुनिया का सबसे पुराना देवदार का पेड़ चकराता में मौजूद है। इसकी उम्र 500 साल से भी ज्यादा है। हादसे के बाद की 2 फोटोज... मलबे में दबे लोगों को ढूंढने का काम शुरू धराली में सेना और NDRF की टीम ने 8 अगस्त से मलबे में दबे लोगों को खोजने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए सेना एडवांस पेनिट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल कर रही है। इससे बिना खुदाई किए ही जमीन में दबे लोगों का पता लगाया जा सकता है। पेनिट्रेटिंग रडार एक हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो तरंग जमीन के नीचे भेजता है, जहां यह मिटटी, पत्थर, धातु और हड्डियों को अलग-अलग रंगों के जरिए बताता है। इसके जरिए जमीन के नीचे 20-30 फीट तक फंसे लोगों या शवों की पहचान की जा सकती है। ................................
धराली-हर्षिल से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... धराली त्रासदी-हाईटेक मशीनें पहुंचने में 4 दिन और लगेंगे: 80 एकड़ से मलबा हटाने में 3 जेसीबी लगीं, 100-150 लोगों के दबे होने की आशंका उत्तरकाशी के धराली गांव में आई आपदा का आज चौथा दिन है। अभी भी 100 से 150 लोग लापता हैं, वे मलबे में दबे हो सकते हैं। पूरी तरह से रेस्क्यू शुरू होने में 4 दिन का समय और लग सकते हैं। धराली के 80 एकड़ में 20 से 50 फीट तक मलबा फैला है। इसे हटाने के लिए सिर्फ 3 जेसीबी मशीनें लगी हैं। पूरी खबर पढ़ें...
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