Search…

    Saved articles

    You have not yet added any article to your bookmarks!

    Browse articles
    Select News Languages

    GDPR Compliance

    We use cookies to ensure you get the best experience on our website. By continuing to use our site, you accept our use of cookies, Privacy Policies, and Terms of Service.

    उत्तराखंड में बढ़ रहीं बादल फटने की घटनाएं:एक्सपर्ट ने बताए 3 कारण- टिहरी डैम से ज्यादा बादल बन रहे, जंगल घटे, मानसून सीजन सिमटा

    4 hours ago

    5

    0

    उत्तराखंड में पिछले 10 वर्षों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ गई हैं। एक्सपर्ट ने भास्कर को बताया कि इन घटनाओं के पीछे 3 प्रमुख कारण हैं। पहला- टिहरी डैम, दूसरा- मानसून सीजन का सिमटना और तीसरा उत्तराखंड के मैदानी हिस्सों में वनों का अभाव। वाडिया इंस्टिट्यूट के भू-भौतिकी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि एक दशक में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अब ‘मल्टी क्लाउड बर्स्ट' की स्थिति पैदा हो गई है। यानी कई बादल एक साथ, एक ही स्थान पर फटते हैं, जिससे भारी नुकसान हो रहा है। डॉ. सुशील के अनुसार, टिहरी बांध बनने के बाद ऐसी घटनाओं में इजाफा हुआ है। टिहरी में भागीरथी नदी पर करीब 260.5 मीटर ऊंचा बांध बना है, जिसका जलाशय लगभग 4 क्यूबिक किमी क्षेत्र में फैला है, यानी 32 लाख एकड़ फीट। इसका ऊपरी जल क्षेत्र करीब 52 वर्ग किमी है। जिस भागीरथी नदी का जलग्रहण क्षेत्र पहले काफी सीमित था, बांध बनने के बाद वह बहुत बढ़ गया है। इतनी बड़ी मात्रा में एक जगह पानी इकट्ठा होने से बादल बनने की प्रक्रिया तेज हो गई है। मानसून सीजन में ये बादल इस पानी को ‘सह' नहीं पाते और फट जाते हैं। पूरे उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। नदी के प्राकृतिक बहाव को बाधित करने से प्रकृति असंतुलन में आ गई है। इसीलिए बादल फटने की घटनाओं में तेजी आई है। 1952 की वह त्रासदी, जब सतपुली का अस्तित्व खत्म हो गया था मानसून सीजन: 4 माह की जगह 2 में ही सिमटा मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के शोध के अनुसार, कुछ सालों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पूरे मानसून सीजन में बारिश तो लगभग समान ही रिकॉर्ड हो रही है, लेकिन ‘रेनी डे’ (किसी एक स्थान पर एक दिन में 2.5 मिमी या उससे अधिक बारिश दर्ज होने को ‘रेनी डे’ कहा जाता है) की संख्या में कमी आई है। यानी, जो बारिश पहले 7 दिनों में होती थी, वह अब केवल 3 दिनों में ही हो जा रही है, जिससे हालात बिगड़ रहे हैं। साथ ही, जो मानसून सीजन पहले जून से सितंबर तक फैला होता था, वह अब सिकुड़कर केवल जुलाई-अगस्त तक सिमट गया है। मैदानों में वन घटे: पहाड़ों पर जाकर फट रहे बादल मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, अतिवृष्टि के लिए वनों के असमान वितरण को भी एक बड़ा कारण मानते हैं। उत्तराखंड के 70% से अधिक क्षेत्र में वन हैं, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में वन नाममात्र के ही हैं। ऐसे में मानसूनी हवाओं को मैदानों में बरसने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता और पर्वतीय क्षेत्रों में घने वनों के ऊपर पहुंचकर मानसूनी बादल अतिवृष्टि के रूप बरस जाते हैं। वे कहते हैं कि आज जरूरत सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी तीव्र वनीकरण की आवश्यकता है। ............................... बादल फटने की घटना क्यों होती है... इस खबर से जानिए भास्कर एक्सप्लेनर- 34 सेकेंड में बह गया पूरा गांव: 300 करोड़ लीटर बारिश, बादल कैसे फटता है, हिमालय के पहाड़ ढह क्यों जाते हैं उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में पहाड़ से पानी का एक सैलाब और उसके साथ ढेर सारा मलबा आया और 34 सेकेंड के अंदर एक पूरा का पूरा गांव बह गया। अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और 50 से ज्यादा लोग लापता हैं। इस भयंकर तबाही की वजह है- बादल फटना। पूरी खबर पढ़ें...
    Click here to Read more
    Prev Article
    Nutrition coach shares 3 breakfast mistakes that can slow down weight loss: ‘Not eating enough protein’
    Next Article
    Top stocks to buy today: Stock recommendations for August 6, 2025 - check list

    Related Politics Updates:

    Comments (0)

      Leave a Comment