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    यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर गूंजा जय श्रीराम:हरियाणवी ने फहराया तिरंगा, माइनस 30 डिग्री तापमान, हाड़ गलाती ठंड और बर्फीली हवाएं झेली

    21 hours ago

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    हरियाणा के पर्वतारोही नरेंद्र यादव ने 15 अगस्त को सुबह सवा 9 बजे यूरोप की सबसे ऊंची माउंट एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा फहराया। चोटी पर पहुंचते ही जय श्रीराम और भारत माता का जयघोष किया। साथ ही नशा मुक्ति का संदेश दिया। रूस में स्थित इस चोटी पर यह उनकी तीसरी चढ़ाई थी। वह इस पर सबसे ज्यादा चढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। यह उनके नाम 24वां वर्ल्ड रिकॉर्ड होगा। यह काकेशस पर्वत श्रेणी में आता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 18,150 फीट है। यूरोप और एशिया की सीमा पर स्थित है, लेकिन एल्ब्रुस का पश्चिमी हिस्सा भौगोलिक रूप से यूरोप में गिना जाता है। इस कारण से यह यूरोप का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है। अभियान को लीड करने के लिए 30 वर्षीय नरेंद्र यादव ने जिस 12 सदस्यीय दल का नेतृत्व किया, उसमें नेपाल, स्वीडन, रूस, बंगलादेश, ऑस्ट्रेलिया और चिली के पर्वतारोही शामिल रहे। अब अक्टूबर में इससे भी चुनौतीपूर्ण अभियान पर जाएंगे, जिनमें ज्वालामुखी पर्वतों की चढ़ाई शामिल है। जानिए कैसे माइनस 30 डिग्री टेंपरेचर और 50 किमी रफ्तार की बर्फीली हवा झेली 6 अगस्त को रूस पहुंचे और शुरू हुई तैयारी पर्वतारोहण व साहसिक क्षेत्र में 23 रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा चुके रेवाड़ी के गांव नेहरूगढ़ के नरेंद्र इस अभियान को लीड करने के लिए 6 अगस्त को भारत से रूस रवाना हुए। नरेंद्र साल 2017 और 2023 में भी इस चोटी को फतह कर चुके हैं। इसी वजह से उन्हें 7 देशों के पर्वतारोही दल का नेतृत्व करने का मौका मिला। 9 अगस्त को अभियान शुरू हुआ, 6 दिन ऐक्लिमेटाइजेशन अभियान की शुरुआत 9 अगस्त को हुई। पहले छह दिन के कठिन प्रशिक्षण और ऐक्लिमेटाइजेशन हुआ। ऐक्लिमेटाइजेशन के दौरान दल में शामिल पर्वतारोहियों को जलवायु व परिस्थिति के अनुकूल ढलने का मौका दिया जाता है। ताकि वो कठिन भौगोलिक व विपरीत मौसम जैसे हालात का सामना कर सकें। 14-15 आधी रात को बेस कैंप से चढ़ाई शुरू 14-15 अगस्त की रात 1 बजे बेस कैंप से अंतिम चढ़ाई प्रारंभ हुई। उस वक्त हाड़ गला देने वाली ठंड थी। टास्क लिया गया कि अगले 8 घंटे में चोटी पर पहुंचा जाए। आधी रात को इसलिए कैंपेन शुरू हुई क्योंकि उसी दिन वापस लौटना था। नहीं तो बर्फीले तूफान में फंसने का खतरा रहता है। अंतिम चढ़ाई के लिए सभी प्रतिभागियों के पास 8 से 10 किलो वजनी सामान था। हाड़ गलाती ठंड और बर्फीली हवा का सामना आधी रात को जब चढ़ाई शुरू की गई तब वहां का टेंपरेचर माइनस 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास था। हाड़ गला देने वाली ठंड से भी ज्यादा 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही बर्फीली हवाओं का सामना करना मुश्किल पड़ रहा था। एक-एक कदम जमाकर चलना था। ऐसे अभियानों पर जरा सी गलती जानलेवा बनती है। नरेंद्र के ऊपर पूरे दल की जिम्मेदारी थी। नरेंद्र का अनुभव दल के काम आया। वह पहले ही अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन के अलावा उत्तर अमेरिका (अलास्का) की सबसे ऊंची चोटी माउंट डेनाली को फतह कर चुके हैं। जहां पर माइनस 52 डिग्री तापमान के बीच से चढ़ाई करनी पड़ी। अंटार्कटिका अपने आप में एक सफेद बर्फीला महाद्वीप है। सुबह 9ः15 पर फहराया तिरंगा, जय श्रीराम के जयघोष हुए कदम-कदम बढ़ाते गए और आखिर सुबह 9ः15 बजे वो मौका गया, जिसका सभी को इंतजार था। चोटी पर पहुंचते ही नरेंद्र यादव ने जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारे लगए। तिरंगा फहराया। साथ ही पंफलेट दिखाकर नशा मुक्ति का संदेश दिया। नरेंद्र ने इस चोटी पर चढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी की मुहिम नशा मुक्त हरियाणा–नशा मुक्त भारत का संदेश दिया। किर्गिज गणराज्य ने प्रमाणपत्र और मेडल दिया पर्वतारोही दल की इस उपलब्धि पर किर्गिज गणराज्य के पर्वतारोहण और खेल चढ़ाई संघ ने उन्हें प्रमाण पत्र और मेडल देकर सम्मानित किया। नरेंद्र सिंह यादव पर्वतारोहण जगत में अपने अदम्य साहस और कठिन परिश्रम से कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं। वे सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ाई पूरी करने वाले भारत के पहले युवा पुरुष पर्वतारोही हैं। अब उनका अगला लक्ष्य और भी चुनौतीपूर्ण नरेंद्र यादव ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि अब उनका अगला लक्ष्य और भी चुनौतीपूर्ण होगा। अब उन्हें एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम को पूरा करना है। जिसमें सातों महाद्वीपों की चोटियों के साथ-साथ उत्तर और दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचना शामिल है। इसके साथ ही वे सातों महाद्वीपों के ज्वालामुखी पर्वतों पर भी चढ़ाई कर भारत का परचम एक बार फिर विश्व स्तर पर फहराना चाहते हैं। अगला अभियान अक्टूबर में शुरू होगा। कभी फ्रॉस्टबाइट का शिकार हुए, डॉक्टरों ने पैर की अंगुलियां काटने को कहा नरेंद्र यादव के पैर पर्वतारोहण के कारण फ्रॉस्टबाइट के शिकार हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी है। फ्रॉस्टबाइट के कारण 2 साल तक उनका उपचार चला था। अब उनके दोनों पैर की सभी अंगुलियां मुड़ती नहीं हैं, केवल सीधी ही रहती हैं। एक बार तो डॉक्टर ने उंगलियां काटने के लिए बोल दिया था। कुछ हद तक रिकवरी हुई लेकिन मूवमेंट अभी नहीं है। फ्रॉस्टबाइट को शीतदंश भी कहते हैं। ये एक ऐसी स्थिति है जब त्वचा और उसके नीचे के ऊतक अत्यधिक ठंड के कारण जम जाते हैं। बहन संतोष यादव से हुए प्रेरित पर्वतारोही संतोष यादव से प्रेरणा लेकर यात्रा शुरू करने वाले नरेंद्र यादव ने बताया कि वो उनकी मौसी की बेटी हैं। संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है। संतोष यादव ने साल 1992 में पहली बार माउंट एवरेस्ट को फतह किया। इसके बाद उन्होंने साल 1993 में वह दोबारा एवरेस्ट को फतह करने गईं और सफल रहीं। संतोष यादव ने दुनिया की पहली महिला होने का रिकॉर्ड कायम किया, जिन्होंने 8848 मीटर शिखर माउंट एवरेस्ट को 2 बार फतह किया हो। संतोष कांगशंग की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली दुनिया की पहली महिला भी हैं।
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