ऑर्डर मिलते ही लेपर्ड-टाइगर को मार देते हैं गोली:5 से 10 लाख में खाल से मूंछ तक का सौदा, भास्कर के कैमरे पर खूंखार शिकारी
16 hours ago

लेपर्ड हो या टाइगर, ऑर्डर मिलते ही शिकार करेंगे...ताजा खाल से लेकर दांत, नाखून उतारकर सब कुछ बेच देंगे। दैनिक भास्कर ने ऐसे ही खतरनाक शिकारियों और वन्यजीवों के अंगों और खाल की तस्करी करने वाले रैकेट को कैमरे पर एक्सपोज किया। करीब 45 दिन की पड़ताल के बाद टीम शिकारियों की गैंग तक पहुंची। शिकारी हथियारों से लैस होते हैं। पुलिस का मुखबिर होने का शक होते ही गोली मार देते हैं। ऐसे में रिपोर्टर दलाल बनकर गए और विदेश में बैठे बिजनेसमैन के लिए मोटी डील का लालच दिया। तस्कर लेपर्ड (तेंदुआ) की खाल 5 से 6 लाख और टाइगर की खाल 10 लाख रुपए में देने को तैयार हो गए। तस्कर और शिकारियों ने दावा किया- ऑर्डर देने के 2 दिन में खाल मिल जाएगी। डील करवाने पर दलाल को कीमती मूंछ का बाल और नाखून गिफ्ट में देते हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... खाल खोलते ही पूरे कमरे में बदबू, हिडन कैमरे में कैद की डील भास्कर रिपोर्टर ने दलाल बनकर राजसमंद में एक्टिव तस्करों से संपर्क साधा। तस्करों ने लेपर्ड की खाल की फोटो भेजी और डील के लिए 15 जुलाई को सुबह 11 बजे भीम (राजसमंद) बुलाया। तस्करों के बताए ठिकाने भीम में एक एजेंट रिपोर्टर को करीब 7 किलोमीटर दूर ओडा गांव में लेकर गया। इससे पहले ही सोर्स ने हमें सावधान कर दिया था कि- तस्कर 24 घंटे अपने साथ हथियार रखते हैं, इसलिए सतर्क रहना होगा। जाते ही शिकारियों ने घर के एक कमरे में बैठाया। वहां पहले से मौजूद दो-तीन लोगों ने हमारे सामने बैग खोला। अंदर से एक प्लास्टिक का कट्टा बाहर निकाला, जिसमें लेपर्ड की खाल रखी हुई थी। रिपोर्टर ने लेपर्ड की खाल चैक करने के बाद तस्करों की रिकॉर्डिंग के लिए बहाना बनाया- सेठ (बिजनेसमैन) पहले खाल देखेगा, इसके लिए खाल का वीडियो बनाकर भेजना पड़ेगा। पसंद करते ही हाथों-हाथ पैसा भेज देगा। 15 जुलाई : पहले दिन तस्कर से बातचीत के अंश रिपोर्टर : बदबू बहुत आ रही है। तस्कर : अभी बारिश का पानी लग गया इसलिए। रिपोर्टर : केमिकल नहीं डालते हो क्या? तस्कर : डाला था, लेकिन बारिश आने से गीली हो गई। रिपोर्टर : कितने दिन पुरानी है? तस्कर : दो महीने पहले की है। रिपोर्टर : इसके नाखून कम है। तस्कर : हां, कुछ नाखून टूट गए थे। (तस्कर खाल से टूटे कुछ नाखून हमारी तरफ करते हुए) रिपोर्टर : इन नाखूनों का हम क्या करेंगे? तस्कर : इसे आगे मत देना, गोल्ड में जड़ाकर पहनना रिपोर्टर : यह पूंछ कैसे टूट गई? तस्कर : गीली हो गई थी…इससे कोई परेशानी नहीं होगी। रिपोर्टर : क्या लंबाई होगी इसकी? तस्कर : पूंछ समेत करीब साढ़े चार फीट। रिपोर्टर : यह तो बच्चे की खाल लगती है, ज्यादा बड़ा नहीं है। तस्कर : हां, बच्चा ही है। रिपोर्टर : क्या काम आते हैं खाल, मूंछ, नाखून? तस्कर : बहुत काम आते हैं। इस पर तांत्रिक पूजा पाठ करते हैं। बड़े-बड़े सेठ इसकी डिमांड करते है। नाखून और दांत का ताबीज बनाकर गले में पहन लो तो कोई भी तंत्र, टोना-टोटका आपको नहीं छू पाएगा। छेद होने का बहाना बनाया, तस्कर बोला- टाइगर की खाल लाकर दूं? प्लान के तहत हमने साथी रिपोर्टर को डमी सेठ (खरीदार) बनाया था। जिसकी तस्करों से बात करवाई जा रही थी। पहले ही बता दिया था कि खाल में छेद होने का बहाना बनाकर डील रिजेक्ट करनी है। सेठ बने रिपोर्टर ने तस्करों से कहा- खाल पर कट लगा हुआ है। यह काम नहीं आएगी। तब तस्कर ने जवाब में कहा- कट नहीं गोली का निशान है। हमने तस्करों को भरोसा दिलाया कि सेठ के पास पैसों की कोई कमी नहीं है। उन्हें यह खाल अपने गुरुजी को भेंट करनी है। ऐसे में तस्करों ने कहा- माल तो अच्छा मिल जाएगा, लेकिन उसकी कीमत ज्यादा लगेगी। उसने बताया 10 लाख रुपए में टाइगर की खाल उपलब्ध करवा देंगे। उसने 24 घंटे का टाइम मांगा। अगले दिन दोपहर तक वापस आने को कहा। दूसरे दिन फिर से नई खाल लेकर आया दूसरा तस्कर 16 जुलाई की सुबह 11 बजे टीम फिर से टीम ओडा गांव में उसी घर पहुंची। इस बार एक नया तस्कर कमरे में बैठा हुआ मिला। उसने लाल रंग का एक बैग सामने रखते हुए कहा- जो माल अब लाए हैं वो 100% पसंद आ जाएगा। इस खाल की कीमत 7 लाख रुपए होगी। 16 जुलाई : दूसरे दिन की बातचीत के अंश रिपोर्टर : खाल तो अच्छी है, लेकिन इस पर भी छेद है। तस्कर : काफी कोशिश की…लेकिन गोली लग ही गई। रिपोर्टर : कल भी छेद को लेकर परेशानी आई थी, अगला नहीं लेगा। तस्कर : नहीं, इसका रास्ता हम निकालते हैं। अगले को पता तक नहीं चलेगा कि गोली मारी है। रिपोर्टर : इसकी लंबाई कितनी होगी? तस्कर : पूंछ तक करीब 7 फीट होगी। रिपोर्टर : इसके नाखून, दांत नहीं हैं क्या? तस्कर : नहीं, नाखून और दांत की अलग रेट लगता है। मिल जाएंगे। कितने चाहिए? सब मिल जाएगा। (खाल चेक करते समय रिपोर्टर मूंछ के बाल चेक करने लगा, इसी दौरान तस्कर ने टोका) तस्कर : मूंछ के बाल मत तोड़ो, महंगे हैं। रिपोर्टर : कितने का आता है एक मूंछ का बाल? तस्कर : 5 हजार का रेट है अभी। रिपोर्टर : इसके नाखून और दांत तो हमें भी चाहिए। तस्कर : जुड़े रहो आप डील करवाओ। आपके लिए गिफ्ट ही गिफ्ट है। इस बार आप सीधे ही मिल लेना मुझसे। पैसे आने में कितना टाइम लगेगा? रिपोर्टर : थोड़ा टाइम लगेगा। तस्कर : मैं सिर्फ आधे घंटे हूं यहां पर। रिपोर्टर : फिर कहां जाओगे। तस्कर : फिर से जंगल में जाएंगे। वहां जाने में काफी परेशानी होगी। बारिश का समय है। आधा पैसा एडवांस, फिर मिलेगी टाइगर की खाल तस्कर से टाइगर की खाल के बारे में पूछने पर उसने बताया कि अभी उपलब्ध है, लेकिन लाने में टाइम लगेगा। इसके लिए पहले आधा पैसा एडवांस देना होगा। ऐसे में रिपोर्टर ने टाइम नहीं होने का बहाना किया। तब तस्कर ने कहा एक बार लेपर्ड के खाल की डील करो, विश्वास हो जाएगा। उसके बाद जिसकी डिमांड करोगे, तुरंत उपलब्ध करवा देंगे। हवाला से पैसे आने का बहाना कर तस्करों के बीच से निकले लेपर्ड की दूसरी खाल रिजेक्ट करने का कोई बहाना नहीं था। तस्कर खाल का पैसा तुरंत मिलने की उम्मीद में बैठा था। ऐसे में रिपोर्टर ने तस्करों से कहा- इतनी बड़ी रकम साथ में लेकर घूमने में खतरा रहता है। बिजनेसमैन पकड़े जाने के डर से खाते में भी पैसा नहीं भेजेगा। पेमेंट हवाला के जरिए मिलेगी। पैसा मिलते ही खाल डिलीवर करनी होगी। भरोसा दिलाने के लिए रिपोर्टर ने हवाला कारोबारियों की तरह ही नाटक किया। पहले से फटे हुए 20 रुपए के नोट का हिस्सा अपने पास रखा, दूसरा हिस्सा तस्करों को थमा दिया। पूरे दो दिन तक टीम ने तस्करों के गांव तक पहुंचकर पूरी डील को कैमरे में कैद किया। हालांकि, तस्करों की पहचान पता कर पाना मुश्किल था। क्योंकि उससे जुड़ी जानकारी पूछने पर शक होने का डर था। एक महीने की पड़ताल के बाद रिपोर्टर गिरोह तक पहुंचा इन्वेस्टिगेशन में सामने आया था कि राजसमंद-उदयपुर के कई इलाकों से लेपर्ड गायब हो रहे हैं। वहीं, रणथंभौर और सरिस्का में भी 16 टाइगर लापता हैं। इन जीवों के अंगों की डिमांड होने के कारण बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा है। देशभर में अरावली की पहाड़ियों में बसे राजसमंद के कामली घाट व टॉडगढ़, ब्यावर के भीम, पाली के बड़ा गुड़ा, उदयपुर के गोगुंदा के जंगलों से इन जानवरों के अंगों की सप्लाई की जा रही है। रिपोर्टर ने करीब एक महीने तस्करों से संपर्क साधने की कोशिश की। तीन बार तस्करों ने अलग-अलग लोकेशन सायरा, रायपुर, टॉडगढ़ बुलाया। तीनों बार खाल बिक जाने का कहकर मना कर दिया। आखिरकार 14 जुलाई को राजसमंद के भीम इलाके में एक गिरोह से संपर्क हो पाया था। तस्करों ने बातचीत में किए खुलासे : भीषण गर्मी में शिकार, देशभर में नेटवर्क तस्करों से बातचीत के दौरान सामने आया कि उनके पास हर महीने लेपर्ड की खाल, दांत, नाखून खरीदने के लिए बाहर से लोग आते हैं। उज्जैन, अहमदाबाद, दिल्ली सहित और भी कई जगह पर वन्यजीव के अंग ऑर्डर पर सप्लाई होते हैं। सबसे ज्यादा शिकार का समय गर्मी का होता है। उस दौरान जंगल में एक दो जगह ही पानी की होती हैं। पानी पीते जानवरों का वहां शिकार किया जाता है। वन विभाग को भनक तक नहीं, कैसे गायब हो रहे कैट प्रजाति के वन्यजीव लेपर्ड की खाल लाने वाले तस्कर ने बताया कि वन विभाग के कर्मी केवल चौकी तक ही गश्त करते हैं। ज्यादातर चौकियां गांवों के आस-पास ही होती हैं। घने जंगल तक कोई गश्त करने नहीं जाता। ऐसे में शिकारी बड़ी आसानी से अंदर चले जाते हैं। गोली मारकर शिकार करते हैं और वहीं उसकी खाल सहित दूसरे अंग निकालते हैं। एक तस्कर ने यह तक दावा किया कि एक बार खाल निकालकर फॉरेस्ट चौकी के पास ही छिपाकर रख दी थी। जिसे बाद में निकाल लाए थे। जिम्मेदार बोले- टॉडगढ़ रावली में नहीं शिकार की सूचना टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य (राजसमंद) में DFO कस्तूरी सुले से हमने भास्कर पड़ताल में एक्सपोज हुए लेपर्ड के शिकारी और लाखों में खाल की तस्करी को लेकर सवाल किए। पढ़िए उनका जवाब... वन विभाग के रेंजर और फॉरेस्ट गार्ड टॉडगढ़ रावली जंगल में जहां तक गाड़ी जाती है वहां तक गाड़ी से गश्त करते हैं। इसके बाद अंदर जंगल में कर्मचारी पैदल गश्त करते हैं। राजस्थान के वन मंत्री बोले- अधिकारियों के खिलाफ भी होगा एक्शन इस कारण है लेपर्ड के अंगों की डिमांड लेपर्ड की खाल को कई लोग अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं। घरों में रखना पसंद करते हैं। इसके साथ ही तंत्र-मंत्र क्रियाओं में इसका उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इससे जैकेट, बैग भी बनाए जाते हैं। भारत में इन चीजों का बैन होने पर इसे विदेशों में सप्लाई किया जाता है। नाखून और दांत को लोग आभूषण की तरह अपने गले में पहनना पसंद करते हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नाखून और दांत को अगर अपने गले में पहनेंगे तो कोई भी बुरी बला उनके पास नहीं आएगी। मूंछ के बाल का तांत्रिक अलग-अलग तरह के ताबीज बनाने के लिए करते हैं। ऐसे करते हैं लेपर्ड का शिकार (दैनिक भास्कर टीम केवल गिरोह को एक्सपोज करना चाहता थी, इसलिए किसी तरह का लेनदेन नहीं किया गया।)
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