पहली बार भारतीय एक्वानॉट्स समुद्र में 5,000 मीटर नीचे गए:यह भारत के समुद्रयान की तैयारी का हिस्सा; 'मत्स्य 6000' दो साल बाद लॉन्च होगा
2 hours ago

शुभांशु शुक्ला के इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचने के लगभग एक महीने बाद दो भारतीय एक्वानॉट्स ने समुद्र में सबसे ज्यादा गहराई तक जाने का रिकॉर्ड बनाया। फ्रांस के साथ जॉइंट मिशन में भारतीय एक्वानॉट्स ने 5 और 6 अगस्त को फ्रांसीसी पनडुब्बी 'नॉटाइल' के जरिए उत्तरी अटलांटिक महासागर में डीप डाइव सफलतापूर्वक पूरी की। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियन टेक्नोलॉजी के साइंटिस्ट राजू रमेश 5 अगस्त को पुर्तगाली तट के पास होर्टा में 4,025 मीटर नीचे उतरे। वहीं 6 अगस्त को भारतीय नौसेना के कमांडर जतिंदर पाल सिंह (रिटायर्ड) ने 5,002 मीटर की गहराई तक गोता लगाया। यह मिशन भारत के समुद्रयान 'मत्स्य 6000' की तैयारी का हिस्सा है। भारत की स्वदेशी मत्स्य 6000 पनडुब्बी 2027 में लॉन्च होगी। यह समुद्र के अंदर 6000 मीटर की गहराई तक जाएगी। भारत छठवां देश है जिसने मानव सबमर्सिबल बनाई है। इसके पहले अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन मानवयुक्त सबमर्सिबल बना चुके हैं। टाइटेनियम एलॉय से बनी है ‘मत्स्य 6000’
‘मत्स्य 6000’ सबमर्सिबल 12-16 घंटे तक बिना रुके चल सकती है। इसमें 96 घंटे तक ऑक्सीजन सप्लाई रहेगी। इसका व्यास 2.1 मीटर है। इसमें तीन लोग बैठ सकते हैं। ये 80mm के टाइटेनियम एलॉय से बनी है। ये 6000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल के दबाव से 600 गुना ज्यादा यानी 600 बार (दबाव मापने की इकाई) प्रेशर झेल सकती है। सबमर्सिबल क्या है, ये पनडुब्बी से कैसे अलग है
पनडुब्बी और सबमर्सिबल दोनों पानी के अंदर चलते हैं, लेकिन उनके डिजाइन, काम और उद्देश्य अलग-अलग हैं। पनडुब्बी एक प्रकार का जलयान है जो सतह और पानी के नीचे दोनों पर काम कर सकता है। यह बिजली या डीजल इंजन से चलता है। पनडुब्बियां आमतौर पर आकार में बड़ी होती हैं और कई लोगों को ले जा सकती हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से टोही, निगरानी और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है। वहीं, सबमर्सिबल एक प्रकार का वॉटरक्राफ्ट है जिसे सिर्फ पानी के नीचे संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह आमतौर पर आकार में छोटा होता है और सीमित संख्या में लोगों को ले जा सकता है। सबमर्सिबल का उपयोग आमतौर पर रिसर्च के लिए किया जाता है। ये मिलिट्री ऑपरेशन्स के लिए नहीं बने होते। सबमर्सिबल को पानी के अंदर जाने के लिए जहाज या प्लेटफॉर्म की जरूरत होती है। ये बात सबमर्सिबल को पनडुब्बियों से अलग करती है क्योंकि पनडुब्बियां स्वतंत्र रूप से ऑपरेट कर सकती हैं। समुद्र तल से धातुएं निकालने की कवायद
दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए ई-वाहनों और उनके लिए बैटरियों की मांग में तेजी हो रही है। वहीं, इनको बनाने में इस्तेमाल होने वाले संसाधन दुनियाभर में कम होते जा रहे हैं। समुद्र की गहराई में पाया जाने वाला लीथियम, तांबा और निकल बैटरी में इस्तेमाल होते हैं। वहीं, इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी कोबाल्ट और स्टील इंडस्ट्री के लिए जरूरी मैगनीज भी समुद्र की गहराई में उपलब्ध है। अनुमानों के मुताबिक, तीन साल में दुनिया को दोगुना लीथियम और 70% ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी। वहीं, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक करीब पांच गुना ज्यादा लीथियम और चार गुना ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी। इन रॉ-मटेरियल का उत्पादन मांग से काफी कम हो रहा है। इस अंतर को बैलेंस करने के लिए समुद्र की गहराई में खुदाई को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। ---------------- ये खबर भी पढ़ें... भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु बोले- फोन भारी लगता है: लैपटॉप बिस्तर से गिरा दिया भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के साथ फिर से तालमेल बिठाने का अपना अनुभव बताया। उन्होंने कहा- धरती पर लौटने के बाद मैंने फोटो लेने के लिए मोबाइल मांगा। जिस समय मैंने मोबाइल पकड़ा, मुझे लगा वह बहुत भारी है। पूरी खबर पढ़ें...
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