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    उत्तर प्रदेश से एमपी में पहुंचते हैं नशे के डोज:भास्कर के कैमरे में कैद सप्लाई का वीडियो; तस्कर बोला- डिलीवरी का काम लड़कियों के पास

    4 hours ago

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    मध्यप्रदेश में नशे के लिए इस्तेमाल होने वाले कफ सिरप की खेप उत्तर प्रदेश से पहुंच रही है। रीवा इसका गढ़ बन गया है। यहां इसकी सप्लाई का पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। नशे के कारोबार में शामिल लोगों से डील करते हुए पुलिसकर्मी भी दैनिक भास्कर के कैमरे में कैद हुए हैं। भास्कर इन्वेस्टिगेशन के पार्ट-1 में बताया था कि रीवा समेत 6 जिलों में प्रतिबंधित कोडीन फॉस्फेट से बनी सिरप ठेलों पर बिक रही है। प्रतिबंधित नशीली दवा की सप्लाई कहां से हो रही है? पुलिस इस कारोबार को क्यों नहीं रोक पा रही है? पार्ट-2 में जानिए इन्हीं सवालों के जवाब... तस्कर ने बताया नशीली दवा की सप्लाई का नेटवर्क नशे के इस नेटवर्क की तफ्तीश के दौरान भास्कर रिपोर्टर की मुलाकात तस्कर संजू केवट से हुई। रिपोर्टर ने संजू को अपना परिचय राजस्थान के कफ सिरप डीलर के रूप में दिया। संजू ने बातचीत में बताया कि इस पूरे धंधे को लड़कियां संभाल रही हैं। उसने ये भी बताया कि किस तरह से यूपी के शहरों से कफ सिरप रीवा और आसपास के जिलों में पहुंचता है। संजू से हुई बातचीत पढ़िए... रिपोर्टर: माल कहां से और कौन लाता है? कितने बजे सप्लाई होती है? तस्कर: रीवा में माल तो बनारस (यूपी) से ही आता है। एक गाड़ी में 15 से 20 पेटी होती हैं। सिमरिया रोड बायपास से होते हुए ये अंदर कॉलोनी तक आती है। इसके बाद सीधे कबाड़ी मोहल्ले की पुलिया के नीचे पहुंचती हैं। इसमें दो लड़कियां होती हैं। एक माल उतारती है और दूसरी पैसा लेती है। माल आने का टाइम सुबह 4 से 7 बजे के बीच है। रिपोर्टर: इस टाइम पर क्या पुलिस नहीं होती? तस्कर: पुलिसवाले ही एंट्री कराते हैं। दो-चार तो पूरी तरह मिले हुए हैं। जितेंद्र नाम के आरक्षक का तो पूरा मामला सेट है। भले ही उसका ट्रांसफर गढ़ थाने में हो गया हो, लेकिन अभी भी पूरी तरह इन्वॉल्व है। सुबह 4 बजे आता है, एंट्री कराकर 1 घंटे में वापस चला जाता है। चौरहटा थाने का कॉन्स्टेबल शिवाजीत भी है। पुलिस पहले चक्कर काटकर देख लेती है कि आसपास कोई है तो नहीं, फिर गाड़ी लाने का मैसेज कर देते हैं। रिपोर्टर: कितने समय में गाड़ी खाली हो जाती है? तस्कर: दो मिनट भी नहीं लगता। 20 पेटी उतारने में कितना समय लगता है? अगले 3 मिनट में तो गाड़ी चौराहे पर खड़ी होती है। 10 पेटी माल तो गांव में उतार दिया जाता है। आजकल गांव में भी 10-10 पेटी के ग्राहक बन गए हैं। इस काम में पैसा बहुत है। हमारे मोहल्ले की निधि नाम की लड़की है। पिछले एक साल में उसने 1 करोड़ तक कमा लिया है। रिपोर्टर: इसका मतलब पुलिस की पूरी मिलीभगत है? तस्कर: पुलिस के बगैर कुछ होता है क्या? पुलिस डेली का पैसा ले जाती है, इसलिए कार्रवाई नहीं करती। ऊपर से ज्यादा प्रेशर आता है तो कभी-कभार पकड़ती है, बाद में पैसा लेकर छोड़ देती है। तस्कर के बताए सारे पॉइंट्स को क्रॉस चेक किया रात के अंधेरे में कच्चे रास्तों पर पहुंचा भास्कर रिपोर्टर संजू तस्कर से मिले हिंट के बाद भास्कर रिपोर्टर ने तीन रात प्रयागराज से रीवा हाईवे रूट की रैकी की। इस पड़ताल में सामने आया कि रीवा तक अवैध रूप से कफ सिरप पहुंचने के दो रास्ते हैं। पहला- हाईवे के बजाय कच्चे रास्ते से होते हुए बायपास तक पहुंचना और दूसरा- सतना, सीधी और सिंगरौली से होते हुए बायपास से रीवा शहर में एंट्री। 23 जुलाई को भास्कर इन्वेस्टिगेशन टीम यूपी से रीवा पहुंचने वाले हाईवे पर नजर रख रही थी। उसी दौरान टीम को बिना नंबर की बोलेरो गाड़ी दिखी। रिपोर्टर ने तुरंत वीडियो बनाने की कोशिश की, तब तक गाड़ी तेजी से निकल गई। इस गाड़ी में पीछे की तरफ पेटियां रखी हुई थीं। वे पेटियां उसी तरह की थीं, जिनसे सिरप की सप्लाई होती है। रिपोर्टर ने पीछा किया तो बोलेरो कच्चे रास्ते पर चली गई कुछ देर गाड़ी का पीछा करने पर पता चला कि इसका सपोर्ट करने के लिए पूरी टीम है। जिस टैक्सी में भास्कर रिपोर्टर सवार था, उसके ड्राइवर ने बोलेरो का पीछा करने से इनकार कर दिया। बोला- जान है तो जहान है। हमने देखा कि बोलेरो हाईवे छोड़कर एक कच्चे रास्ते पर चली गई। टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि रीवा से करीब 15 किमी दूर हाईवे पर चार अलग-अलग रास्ते निकलते हैं। यूपी से चलने वाली गाड़ियां शहर में इन कच्चे रास्तों से दाखिल होती हैं। ये बनकुईया रोड, बीड़ा-सेमरिया रोड, जेपी रोड और कराहिया रोड से शहर में दाखिल होते हैं। इन रास्तों पर पुलिस की गश्त नहीं रहती। बाइक पर पेटियां रखकर ले जाते हैं तड़के 4 से 7 के बीच जब माल पहुंच जाता है तो फिर शहर के छोटे तस्कर सप्लाई लेने बाइक से आते हैं। शहर में लगे सीसीटीवी कैमरों में इनकी तस्वीरें कैद हुई हैं। भास्कर रिपोर्टर ने 28 जून 2025 का एक सीसीटीवी फुटेज हासिल किया है। इसमें सुबह साढ़े आठ बजे बाइक पर सवार दो युवक एक बोरा ले जाते दिख रहे हैं, फिर वे गाड़ी से नीचे फेंकते हैं और एक लड़की तेजी से उठाकर ले जाती है।। सूत्रों ने बताया कि हर सुबह इस तरह से सप्लाई और डिलीवरी का काम होता है। तस्कर ज्यादा माल इकट्ठा नहीं करते। इन सभी के ग्राहक बंधे हुए हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि पुलिस यदि छापा मारे तो ज्यादा माल न पकड़ा जाए। पुलिस की तस्करों से मिलीभगत का ये है सबूत इस पॉइंट को क्रॉस चेक करने के लिए भास्कर रिपोर्टर को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। कबाड़ी मोहल्ले में दिन के वक्त पुलिसकर्मी खुद छोटे तस्करों से बातचीत करते हुए दिखे। 25 जुलाई को दोपहर डेढ़ बजे जब भास्कर रिपोर्टर कबाड़ी मोहल्ले में पड़ताल कर रहा था, उसी वक्त MP17 NB 4911 नंबर की बाइक पर सवार एक पुलिसकर्मी यहां पहुंचा। वह वर्दी में था और तस्करों से बातचीत कर रहा था। रिपोर्टर ने इसे अपने कैमरे में कैद किया। इसके बाद वर्दी पहने एक कॉन्स्टेबल एक महिला तस्कर के पास पहुंचा। भास्कर रिपोर्टर उसके पीछे गया, लेकिन कॉन्स्टेबल को शक हुआ तो वह दूसरे रास्ते से गली में गायब हो गया। दो थाने से घिरा इलाका, पुलिस कभी जॉइंट ऑपरेशन नहीं चलाती रीवा के कबाड़ी मोहल्ले में जहां प्रतिबंधित दवा का डोज खुलेआम बिक रहा है, उसका एक हिस्सा वार्ड नंबर 19 में आता है। यह कोतवाली थाना एरिया है। एक हिस्सा वार्ड 6 में है, जो सिविल लाइन पुलिस थाने में आता है। दोनों थाने कभी जॉइंट ऑपरेशन नहीं चलाते। जिस दिन कोतवाली पुलिस अपने एरिया के वार्ड 19 में कार्रवाई करती है तो सारे तस्कर वार्ड 6 में चले जाते हैं। पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगता और जिस दिन सिविल लाइन पुलिस वार्ड 6 में कार्रवाई करती है तो सारे तस्कर वार्ड 19 में शिफ्ट हो जाते हैं। आईजी बोले- कार्रवाई का असर, बोतल के दाम दोगुने हो गए शहर में खुलेआम चल रहे नशे के इस कारोबार को लेकर भास्कर ने आईजी गौरव राजपूत से बात की। उन्होंने कहा- हमने 100 दिन में तस्करों की कमर तोड़ने का टारगेट रखा था। सभी जिलों के एसपी को ये टारगेट दिया गया। पुलिस ने लोगों की मदद से एक मजबूत मुखबिर सिस्टम डेवलप किया। लोगों ने नशा बेचने वालों की जानकारी पुलिस को दी। आईजी गौरव राजपूत कहते हैं- पिछले 100 दिनों की उपलब्धि की बात करें तो हमने साढ़े तीन करोड़ रुपए कीमत के नशीले पदार्थ जब्त किए हैं। ये हमारे ऑपरेशन का ही असर है कि कफ सिरप की एक बोतल 120 रुपए में मिल रही थी, आज वो दोगुने से भी ज्यादा दाम पर बिक रही है यानी माफिया को माल लाने में दिक्कतें हो रही हैं। क्या कुछ पुलिसकर्मियों की भी मिलीभगत है? इस सवाल पर आईजी ने कहा- हमने सभी जिलों के एसपी के साथ मिलकर और आईजी ऑफिस ने भी एक रेड फ्लैग लिस्ट बनाई है। इसमें उन पुलिसकर्मियों के नाम हैं, जो तस्करों से मिले हैं। इस लिस्ट में जिनके भी नाम हैं, उन्हें वॉर्निंग दी गई है। कुछ पुलिसकर्मियों का ट्रांसफर भी किया है। तीन दशक पहले शुरू हुआ था कफ सिरप का नशा शहीद भगत सिंह सेवा समिति के अध्यक्ष सुजीत द्विवेदी बताते हैं कि घोड़ा चौक के पास एक मेडिकल स्टोर है, 1994 में वहां से इसकी शुरुआत हुई थी। कॉलेज जाने वाले कुछ लड़कों ने इसका नशा करना शुरू किया था। उस समय कफ सिरप की एक बोतल 10 रुपए में आती थी। उसके बाद से इसे पीने वालों की संख्या बढ़ती गई। अब आलम ये है कि हर दूसरा युवक इसकी गिरफ्त में है। सुजीत बताते हैं- 25 साल पहले मैं रेस्टोरेंट चलाता था। कफ सिरप से नशे का चलन नया था। लड़के इसी का नशा कर मेरे रेस्टोरेंट में आते और मारपीट करते थे। तब मैंने फैसला किया कि नशे के खिलाफ अभियान चलाऊंगा। रीवा के हर चौराहे पर मैंने इसके खिलाफ अभियान चलाया। पुलिस ने अभी शुरू किया है। युवा जितने जागरूक होंगे, उतना अच्छा है। नशे के कारोबार से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... एमपी में ठेलों पर बिक रहा नशे का डोज, रिपोर्टर ने 5 जगह से खरीदकर पुलिस को सबूत सौंपे मध्यप्रदेश में नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली प्रतिबंधित सिरप ठेलों पर बिक रही है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे रीवा में 400 रुपए में नशे का डोज मिल रहा है। दैनिक भास्कर ने रीवा में 20 दिन तक ड्रग कारोबार के नेटवर्क का हिस्सा बनकर 10 चेहरों को एक्सपोज किया है। पढ़ें पूरी खबर...
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