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    'वेरिफिकेशन का इरादा युवा वोटर्स को लिस्ट से हटाना':याचिकाकर्ता के वकील बोले- डेडलाइन का प्रेशर, बिना दस्तावेज वाले बेबस; SIR पर SC में सुनवाई

    19 hours ago

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    सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR (सामान्य शब्दों में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन) पर गुरुवार को तीसरे दिन की सुनवाई शुरू हो चुकी है। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने कहा कि SIR यानी वोटर वेरिफिकेशन का इरादा युवा वोटर्स को लिस्ट से हटाना है। उन्होंने ये भी दलील दी कि डेडलाइन का प्रेशर है, जिनके पास दस्तावेज नहीं है वो बेबस हैं। सुनवाई की शुरुआत चुनाव आयोग के 1 जनवरी 2003 को आधार मानकर मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका से हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील निजाम पाशा ने दलील दी कि किसी भी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया एक जैसी होती है, चाहे वह इंटेंसिव रिवीजन हो या समरी रिवीजन। उन्होंने कहा, 'अगर किसी के पास 2025 में जारी EPIC कार्ड है, तो वह उसी प्रक्रिया से गुजर चुका है। 01.01.2003 को आधार तिथि बनाने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं है।' पाशा ने आरोप लगाया कि इस नोटिस का आधार गलत है और इससे राज्य के युवाओं को अतिरिक्त दस्तावेज की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इससे युवा मतदाताओं को बाहर रखने और एंटी-इनकंबेंसी वोट को कम करने का इरादा झलकता है।' उनके अनुसार, 'अभी तक लगभग 65 लाख मतदाता सूची से बाहर रह गए हैं और जब फॉर्म की जांच होगी, तो यह साफ होगा कि इसमें युवाओं की संख्या अधिक है।' पढ़िए अब तक की सुनवाई में क्या-क्या हुआ 13 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट बोला- SIR प्रक्रिया वोटर फ्रेंडली सुप्रीम कोर्ट ने SIR को वोटर फ्रेंडली बताया है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग ने 11 में से कोई एक डॉक्यूमेंट मांगा है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने मांगे गए दस्तावेजों की संख्या से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि बिहार में 1-2% लोगों के पास स्थायी निवास प्रमाणपत्र होगा। पूरी खबर पढ़ें.. 12 अगस्त; सुप्रीम कोर्ट ने माना, आधार नागरिकता का सबूत नहीं सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR (सामान्य शब्दों में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन) पर सुनवाई हुई। RJD सांसद मनोज झा की तरफ से पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल ने कहा- बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जीवित लोगों को मृतक बताया गया है। चुनाव आयोग की तरफ से सीनियर वकील राकेश द्विवेदी ने कहा- "इस प्रकार की एक्सरसाइज में कुछ गलतियां स्वाभाविक थीं। यह दावा करना कि मृतकों को जीवित और जीवित को मृत घोषित किया गया, यह सही किया जा सकता है, क्योंकि यह एक मसौदा था।" पूरी खबर पढ़ें... कल EC ने दलील दी थी- कुछ गलतियां स्वाभाविक थीं मंगलवार की सुनवाई में RJD सांसद मनोज झा की तरफ से पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल ने कहा था- बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जीवित लोगों को मृतक बताया गया है। चुनाव आयोग की तरफ से सीनियर वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था- इस प्रकार की एक्सरसाइज में कुछ गलतियां स्वाभाविक थीं। यह दावा करना कि मृतकों को जीवित और जीवित को मृत घोषित किया गया, यह सही किया जा सकता है, क्योंकि यह एक मसौदा था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहें, क्योंकि प्रक्रिया शुरू होने से पहले वोटरों की संख्या, प्रोसेस से पहले और अब मृतकों की संख्या समेत अन्य कई सवाल उठेंगे। योगेंद्र यादव दो लोगों को लेकर SC पहुंचे, बोले- ये जिंदा हैं स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान दो लोगों को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। एक पुरुष और एक वृद्ध महिला के साथ वो कोर्ट में पहुंचे थे और बताया- इन्हें चुनाव आयोग की ओर से जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मृत घोषित कर दिया गया है। उन्होंने पीठ से कहा कि इन्हें देखें जिनको मृत घोषित कर दिया गया है, वे जीवित हैं। उनके पास आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज भी हैं। लेकिन उन्हें ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया। आधार नागरिकता का पक्का सबूत नहीं-SC इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग के इस विचार का समर्थन किया कि आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जाना चाहिए, और कहा कि इसका स्वतंत्र रूप से सत्यापन किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से कहा, 'चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका सत्यापन किया जाना चाहिए।' इससे पहले 29 जुलाई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर वोटर्स के नाम कटे हैं, तो हम हस्तक्षेप करेंगे। SIR को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 65 लाख मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इनमें से कुछ अपना घर छोड़कर कहीं और चले गए हैं, कुछ मर गए हैं। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने SIR पर रोक से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने ADR से कहा था- 'अगर खामी मिली तो पूरी प्रक्रिया रद्द कर देंगे।' साथ ही चुनाव आयोग से पूछा था कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पहचान के लिए स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है। चुनाव आयोग ने कहा था, 'राशन कार्ड पर विचार नहीं किया जा सकता। यह बहुत बड़े पैमाने पर बना है, फर्जी होने की संभावना अधिक है।' SC ने कहा था- अगर बात फर्जीवाड़े की है तो धरती पर कोई ऐसा डॉक्यूमेंट नहीं है, जिसकी नकल न हो सके। ऐसे में 11 दस्तावेजों के आपके सूचीबद्ध करने का क्या आधार है? 8 अगस्त को कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से मांगी थी ठोस दलीलें इसके पहले कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि 8 अगस्त तक अपनी याचिका में लगाए गए आरोपों का ठोस आधार और दलील दें। वहीं, चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वो SIR प्रक्रिया के दौरान हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नामों की लिस्ट अदालत में पेश करें। चुनाव आयोग ने SC से कहा- वह कानूनी तरीके से अपना काम कर रहा वहीं 12 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले दाखिल जवाब में चुनाव आयोग ने कहा है कि वह कानूनी तरीके से अपना काम कर रहा है। ऐसा कानून जरूरी नहीं कि ड्राफ्ट लिस्ट से हटे नामों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि SIR के दौरान बिना नोटिस जारी किए किसी भी मतदाता का नाम लिस्ट से नहीं हटाया जाएगा। ​​​​​​ NGO ने दायर की थी याचिका निर्वाचन आयोग के 24 जून को वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर दिए गए आदेश के बाद NGO ने याचिका दायर कर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे। पिछले दिनों एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक और आवेदन दिया गया, जिसमें कहा गया कि 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम सार्वजनिक किए जाए। याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दी दलील कोर्ट में एनजीओ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था, 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के कारण बताए जाएं, क्योंकि अभी एक ड्राफ्ट के रूप में सूची है। प्रशांत भूषण ने कोर्ट को यह भी बताया था कि कुछ राजनीतिक दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, जिसमें यह नहीं बताया गया कि जिसका नाम हटाया गया है, वो मतदाता मर गया है या पलायन कर गया है। जानिए क्या है मामला बिहार में मतदाता सूची को ठीक करने के लिए निर्वाचन आयोग ने SIR प्रक्रिया चलाई थी। गहन पुनरीक्षण कर वोटर सूची से उन लोगों के नाम हटाने की बात हुई, जो या तो मृत हो गए है या फिर स्थानांतरित हो गए हैं या फिर जिसके एक से ज्यादा वोटर कार्ड हैं। कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर अनियमितताएं हुई हैं। वैध मतदाताओं के नाम भी सूची से हटा दिए गए हैं। ड्राफ्ट सूची पर सियासत जारी ड्राफ्ट सूची पर सभी लोगों को दावा आपत्ति के लिए निर्वाचन आयोग ने 8 अगस्त तक की तारीख तय की थी। इतने दिनों के बाद भी कई राजनीतिक दल ने आधिकारिक रूप से निर्वाचन आयोग के पास कोई भी आपत्ति दर्ज नहीं की गई। राजनीतिक दलों का लगातार बयानबाजी चल रहा है। राजनीतिक दलों के लगाए गए आरोप और अभी की जारी जानकारी ने राजनीतिक दलों की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आयोग के अनुसार, राजनीतिक दल सिर्फ आरोप लगा रहे हैं, लेकिन औपचारिक रूप से कोई कदम नहीं उठा रहे। जबकि उनके पास नियमानुसार आपत्ति दर्ज कराने की पूरी प्रक्रिया और अवसर उपलब्ध है निर्वाचन आयोग के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार आरजेडी के 47506 BLO है, लेकिन आपत्ति अब तक शून्य है। ठीक इसी तरह कांग्रेस के 17549 BLO पर आपत्ति एक भी, माले के 1496 BLO है, लेकिन आपत्ति एक भी नहीं है। वहीं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 899 BLO हैं, लेकिन इसने भी अब तक एक भी आपत्ति दर्ज नहीं की है। SIR के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने जिरह की। चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने की।
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