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    बिहार में NDA की सीट शेयरिंग फाइनल:JDU 102, भाजपा 101 और चिराग की पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, हम-RLM को 10-10 सीटें

    8 hours ago

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    बिहार में NDA गठबंधन की सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर लगभग साफ हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे के बाद विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों को लेकर गठबंधन दलों के बीच अंतिम सहमति बन गई है। सूत्रों के मुताबिक, जनता दल यूनाइटेड (JDU) 102 और भाजपा 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) यानी LJP (R) को 20, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को 10-10 सीटें मिली हैं। फिलहाल सीटों के बंटवारे को लेकर आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। संभावना जताई जा रही है कि NDA जल्द ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकता है। हालांकि, कौन सी पार्टी किन सीटों पर लड़ेगी, इस पर मंथन चल रहा है। इस दौरान JDU और ‌BJP में 1-2 सीटों का अंतर हो सकता है। भास्कर ने 2 महीने पहले ही बता दिया था सीट शेयरिंग का गणित भास्कर ने 2 महीने पहले ही बता दिया था कि इस बार भी भाजपा, जदयू से कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अब तक जो जानकारी सामने आई है, उससे इस पर मुहर भी लग रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों पर लड़ी थी, उसे 74 पर जीत मिली थी। वहीं JDU 115 सीटों पर लड़ी थी और 43 सीटों पर जीती थी। सूत्रों के मुताबिक इस बार जदयू 102 और भाजपा 101 पर लड़ेंगी। NDA में नीतीश बड़े भाई की भूमिका में लोकसभा चुनाव में BJP ने 17, JDU ने 16, LJP ने 5 और जीतन राम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव में BJP ने JDU से एक सीट ज्यादा पर चुनाव लड़ा था, लेकिन विधानसभा में JDU, BJP से एक-दो ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पिछले 2 विधानसभा चुनाव में NDA की सीट शेयरिंग और रिजल्ट का डेटा 2020 में 135 सीटों लड़ी लोजपा, चिराग इस बार NDA का हिस्सा 2020 का चुनाव तत्कालीन लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने अकेले लड़ा था। पार्टी ने 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि एक सीट पर ही जीत मिली थी। लोजपा ने खासतौर से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से नहीं लड़ा। हालांकि, जून 2021 में लोजपा में टूट हुई और पशुपति पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) बनी, जबकि चिराग की पार्टी लोजपा (रामविलास) है, जो इस बार के चुनाव में NDA का हिस्सा है। पशुपति की पार्टी के महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा है, हालांकि अभी घोषणा बाकी है। 2020 में तीसरे मोर्चे पर लड़े कुशवाहा अब NDA के साथ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), ने 99 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन पार्टी को कोई सीट नहीं मिली। रालोसपा ने 2020 के चुनाव में महागठबंधन (जो राजद और कांग्रेस के साथ था) को छोड़कर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF) बनाया था, जिसमें बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक (सजदद), और अन्य छोटी पार्टियां शामिल थीं। इस बार कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा NDA का हिस्सा है। पार्टी को गठबंधन में 10 सीटें मिल सकती हैं। 2020 में NDA के साथी सहनी अब महागठबंधन में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के हिस्सा थी। पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वीआईपी को बीजेपी ने अपनी 121 सीटों के कोटे में से 11 सीटें दी थीं। इन 11 सीटों में से वीआईपी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। मुकेश सहनी खुद सिमरी बख्तियारपुर सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन वे हार गए थे। बाद में वीआईपी के चारों विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। इस बार VIP महागठबंधन का हिस्सा है। मुकेश सहनी कई बार खुद को डिप्टी CM का दावेदार बता चुके हैं। पार्टी ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात भी कही है। 2020 में मांझी की पार्टी 7 सीटों पर लड़ी थी 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में जीतन राम मांझी की पार्टी, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM), ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के हिस्से के रूप में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था। ये सीटें JDU के कोटे से दी गई थीं, क्योंकि HAM NDA का एक छोटा सहयोगी दल था। HAM ने इन 7 सीटों में से 4 सीटें जीती थीं, जो मुख्य रूप से मांझी की मुसहर (महादलित) समुदाय में पकड़ और गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, और रोहतास जैसे क्षेत्रों में उनके प्रभाव के कारण थी। मांझी ने NDA के साथ गठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार की सरकार को समर्थन दिया, और उनकी पार्टी की चार सीटों ने NDA की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2015 में HAM ने NDA के साथ 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 1 सीट (मांझी की) जीती थी। चुनाव से पहले वोटर वेरिफिकेशन पर विवाद बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) हो रहा है। मतदाता सूची के वेरिफिकेशन को लेकर विवाद है। विपक्ष ने इसमें गड़बड़ी और इसके जरिए वोट चोरी का आरोप लगाया है। यह प्रक्रिया 24 जून 2025 को शुरू हुई थी और इसके तहत मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने थे। चुनाव आयोग के अनुसार, SIR प्रक्रिया में अब तक 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं। इसमें 12.5 लाख मृत मतदाता, 17.5 लाख प्रवासी (जो बिहार से बाहर चले गए), और 5.5 लाख डुप्लिकेट नाम शामिल हैं। कुछ स्रोतों ने इसे 35 लाख तक बताया है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 4.52% से 8% है। विपक्ष का आरोप: महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल, VIP) ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया वोटबंदी (वोटिंग अधिकार छीनने) की साजिश है, जिसका उद्देश्य दलित, पिछड़े, और मुस्लिम मतदाताओं को बाहर करना है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे "M-Y (मुस्लिम-यादव) और PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के खिलाफ साजिश" करार दिया। चुनाव आयोग का जवाब: यह प्रक्रिया मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है, जिसमें मृत, प्रवासी, और अवैध मतदाताओं (जैसे बांग्लादेशी, नेपाली, म्यांमार के नागरिक) के नाम हटाए जा रहे हैं। दस्तावेजों की सख्ती और आधार कार्ड का मुद्दा: SIR के तहत, 2003 की मतदाता सूची में नाम न होने वालों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 11 विशेष दस्तावेजों में से एक जमा करना होगा। इनमें जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल सर्टिफिकेट, या सरकारी पहचान पत्र शामिल हैं, लेकिन आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड को मान्य नहीं किया गया। विपक्ष का तर्क: ग्रामीण और गरीब आबादी, खासकर दलित और पिछड़े वर्ग, के पास ये दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। बिहार में 90% लोगों के पास आधार कार्ड है, लेकिन इसे मान्य न करना अन्यायपूर्ण है। तेजस्वी यादव ने दावा किया, उनका नाम भी सूची से हटाया गया, जिसे आयोग ने खारिज किया और उनके दिखाए गए मतदाता पहचान पत्र को फर्जी बताया। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि आधार, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के रूप में स्वीकार किया जाए। कोर्ट ने यह भी मांग की कि हटाए गए नामों की सूची और कारण सार्वजनिक किए जाएं। 22 अगस्त को कोर्ट ने इस आदेश को दोहराया, जिसे कांग्रेस ने "लोकतंत्र की जीत" करार दिया। आयोग की प्रतिक्रिया: आयोग ने नियमों को थोड़ा आसान किया, जिसके तहत मतदाता पहले फॉर्म जमा कर सकते हैं और बाद में दस्तावेज दे सकते हैं।
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