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    बांके बिहारी कॉरिडोर पर SC की अस्थायी रोक:केस हाईकोर्ट ट्रांसफर, पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनेगी

    10 hours ago

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    सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर और न्यास पर अस्थायी रोक लगा दी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बांके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 के तहत समिति के संचालन को निलंबित किया जाएगा। अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए याची को हाईकोर्ट ट्रांसफर किया जाएगा। एडवोकेट एनके गोस्वामी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक हाईकोर्ट इस मामले पर फैसला नहीं ले लेता, तब तक समिति को स्थगित रखा जाएगा। इस बीच, मंदिर की सुचारू व्यवस्था के लिए एक और समिति का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश करेंगे। समिति में कुछ सरकारी अधिकारी और गोस्वामियों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे, जो मंदिर के पारंपरिक संरक्षक हैं। सरकार ने कहा था- हमारी मंशा मंदिर कब्जाने और धन हड़पने की नहीं इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में सरकार के वकील ने कहा- हमारी मंशा मंदिर कब्जाने और धन हड़पने की नहीं है। हमारी मंशा है कि वहां बेहतर प्रबंधन कर भीड़ को मैनेज किया जाए। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील से सुझाव मांगे। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई शुक्रवार के लिए टाल दी। सोमवार को भी सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी कॉरिडोर मामले में मंदिर कमेटी से तीखे सवाल किए थे। कोर्ट ने पूछा- मंदिर निजी हो सकता है, लेकिन देवता सबके हैं। वहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिर का फंड श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा से जुड़े विकास में क्यों नहीं इस्तेमाल हो सकता? आप क्यों चाहते हैं कि सारा फंड आपके पॉकेट में ही जाए? सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के वकील के स्टेटमेंट पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी कमेटी ने 15 मई को आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी विरोध किया, जिसमें राज्य सरकार को बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने के लिए मंदिर के फंड के इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी। कोर्ट के सख्त सवालों के जवाब में याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने कहा- असल बात यह है कि हमें सुने बिना ऐसा आदेश सुप्रीम कोर्ट से कैसे आया? जबकि मामला कुछ और था, उसमें अचानक आदेश आ गया कि मंदिर का फंड कॉरिडोर बनाने के लिए लिया जाए। इससे असहमति जताते हुए कहा कि किसी जगह का विकास सरकार की जिम्मेदारी है। अगर उसे भूमि अधिग्रहण करना तो वह अपने पैसों से कर सकती है। अब पढ़िए वो दलील जिसको लेकर कोर्ट ने तीखे सवाल पूछे... याचिकाकर्ता की तरफ से वकील श्याम दीवान ने कोर्ट में कहा कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है। उसमें धार्मिक गतिविधियों और मैनेजमेंट को लेकर 2 गुटों में विवाद था। राज्य सरकार ने बिना अधिकार उसमें दखल दिया।मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले आई और कॉरिडोर के लिए मंदिर के फंड के इस्तेमाल का आदेश ले लिया। इसके बाद जल्दी-जल्दी एक अध्यादेश भी जारी कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मंदिर की स्थापना करने वाले और सदियों से उसे संभाल रहे गोस्वामी प्रबंधन से बाहर हो गए। इसी पर कोर्ट ने नाराजगी दिखाते हुए सख्त टिप्पणी की। 15 मई का आदेश वापस ले सकता है कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में लगभग 50 मिनट चली सुनवाई के बाद जजों ने इस बात का संकेत दिया कि 15 मई को यूपी सरकार के बनाए अध्यादेश के फेवर में दिए गए आदेश को वापस लिया जा सकता है। फिलहाल मंदिर प्रबंधन के लिए रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जा सकती है। इसमें जिलाधिकारी को भी रखा जाएगा। बांके बिहारी क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की भी उसके आस-पास के विकास में मदद ली जाएगी। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए उचित सुविधाओं का विकास जरूरी है। पढ़िए 15 मई को कोर्ट ने क्या आदेश दिया था... सुप्रीम कोर्ट के 15 मई को कॉरिडोर बनाने की मंजूरी दी थी। इसके साथ ही बांके बिहारी मंदिर के खजाने से कॉरिडोर बनाए जाने का रास्ता भी साफ हो गया था। कोर्ट ने यूपी सरकार को मंदिर के 500 करोड़ रुपए से कॉरिडोर के लिए मंदिर के पास 5 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने की इजाजत दी थी। शर्त रखी थी कि अधिगृहीत भूमि भगवान के नाम पर पंजीकृत होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को भी संशोधित किया। हाईकोर्ट ने मंदिर के आसपास की भूमि को सरकारी धन का उपयोग करके खरीदने पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में ईश्वर चंद्र शर्मा ने याचिका दाखिल की थी। इसमें दो मुद्दे रखे गए थे। पहला- रिसीवर को लेकर, दूसरा- कॉरिडोर निर्माण को लेकर। इन दोनों मुद्दों पर 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया था। मंदिर के खजाने से खरीदी जाएगी कॉरिडोर के लिए जमीन बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने के लिए प्रदेश सरकार मंदिर के खजाने की राशि से कॉरिडोर के लिए जमीन खरीदना चाहती थी। लेकिन, इसका मंदिर के गोस्वामियों ने विरोध किया और मामला हाइकोर्ट पहुंच गया। हाइकोर्ट ने मंदिर के खजाने की राशि के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ईश्वर चंद्र शर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कॉरिडोर को लेकर याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश में कहा कि मंदिर के खजाने से कॉरिडोर की जमीन खरीदने के लिए पैसा लिया जा सकेगा। सरकार को जमीन मंदिर के नाम लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सार्थक चतुर्वेदी ने बताया कि सरकार सिर्फ जमीन खरीदने के लिए बांके बिहारी मंदिर के खजाने से पैसा ले सकती है। 500 करोड़ रुपए से बनेगा कॉरिडोर बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर बनाने के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च होगा। यह खर्च भूमि अधिग्रहण के लिए किया जाएगा। बांके बिहारी मंदिर के खजाने में करीब 450 करोड़ रुपए हैं। इसी धनराशि से कॉरिडोर के लिए जमीन खरीदी जाएगी। इस जमीन को अधिगृहीत करने में जिनके मकान और दुकान आएंगे, उन्हें मुआवजा दिया जाएगा। ------------------------------ ये भी पढ़ें : बांके बिहारी मंदिर के पास 360 करोड़ रुपए:महीने में एक बार खुलती है दान पेटी; 110 गोस्वामी परिवार देते हैं ड्यूटी मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में कॉरिडोर बनना लगभग तय हो गया है। सर्वे का काम करीब-करीब पूरा हो गया है। लेकिन विरोध जारी है। गोस्वामी परिवार विरोध में है, लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके मन में कई तरह की आशंका है। डर इस बात का भी है कि कॉरिडोर बनने के बाद कहीं मंदिर की जिम्मेदारी उनके हाथ से न निकल जाए। (पढ़ें पूरी खबर)
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