नाबालिग मुस्लिम जोड़े पर हाईकोर्ट का फैसला बरकरार:बाल आयोग से सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप मामले से अनजान, हस्तक्षेप का अधिकार नहीं
4 hours ago

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की याचिका खारिज कर दी। आयोग ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2022 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने दो मुस्लिम विवाहित जोड़ों को सुरक्षा प्रदान की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयोग इस मामले से अनजान है और उसे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सवाल किया कि तीसरा पक्ष यानी बाल अधिकार संरक्षण आयोग ऐसे मामले में हस्तक्षेप कैसे कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- मामला सुरक्षा से जुड़ा, चुनौती क्यों
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर दो लोग सुरक्षा की मांग लेकर आते हैं और न्यायालय ने उन्हें सुरक्षा दी है, तो आयोग उस आदेश को चुनौती क्यों दे रहा है। NCPCR के वकील ने जवाब दिया कि कानून के दृष्टिकोण से आदेश को चुनौती दी गई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी किए थे
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक लड़की कम से कम 15 वर्ष की होने पर वैध रूप से विवाह कर सकती है। इसी तरह का एक फैसला जून 2022 में पारित किया गया था, और उसी वर्ष अक्टूबर में इसी तरह का एक और फैसला पारित किया गया था। NCPCR ने दोनों आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अपनी अपील में, NCPCR ने कहा कि यह फैसला बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम) का उल्लंघन है। क्योंकि यह प्रभावी रूप से बाल विवाह और बच्चों के साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति देता है। हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आज मौखिक रूप से कहा कि जमीनी हकीकत को ध्यान में रखना जरूरी है, जहां नाबालिग प्यार में पड़ सकते हैं और पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे मामलों में, अगर उनके साथी को केवल परिवार के विरोध के कारण पॉक्सो अधिनियम के तहत जेल भेज दिया जाता है, तो इससे युवा लड़कियों को केवल आघात ही होगा।
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