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    बिहार की 50 विधानसभा सीटों पर राहुल की यात्रा:23 जिलों को कवर करेंगे, 2020 में महागठबंधन ने यहां 23 सीटें जीती थीं

    15 hours ago

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    बिहार में राहुल गांधी की अब तक की सबसे बड़ी यात्रा 17 अगस्त से शुरू होगी। वोटर वेरिफिकेशन और चुनाव में वोट चोरी के आरोप पर कांग्रेस नेता की वोट अधिकार यात्रा 23 जिलों से गुजरेगी, जो 50 विधानसभा सीटों को कवर करेगी। विधानसभा चुनाव से पहले शाहाबाद से लेकर मगध, अंग, कोसी, सीमांचल, मिथिला, तिरहुत और सारण में घूमकर महागठबंधन के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेंगे। राहुल गांधी जिन 50 विधानसभा सीटों पर घूमेंगे, उसमें से 23 सीटें महागठबंधन ने 2020 विधानसभा चुनाव में जीती थी। कांग्रेस की बात करें तो 50 में से 20 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें से 8 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2024 में राहुल गांधी ने बिहार में 5 दिनों की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में 5 सीटें सासाराम, औरंगाबाद, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज महागठबंधन के खाते में गई थीं। यहां विधानसभा की 30 सीटें आती हैं, जहां कांग्रेस ज्यादा फोकस कर सकती है। जानें, विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी किन इलाकों में घूमेंगे? वहां कांग्रेस की क्या राजनीतिक स्थिति है? यात्रा से राहुल क्या हासिल करना चाहते हैं? शाहाबाद में अपनी जमीन और मजबूत करेंगे राहुल गांधी शाहाबाद में भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले आते हैं। इसमें से दो जिलों रोहतास और भोजपुर (आरा) के 4 विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी जाएंगे। शाहाबाद की राजनीति को यादव, कुशवाहा, राजपूत, दलित और अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) प्रभावित करते हैं। शाहाबाद में कांग्रेस की स्थितिः इस एरिया में राजद, कांग्रेस और भाकपा माले की पकड़ मजबूत है। हालांकि, गठबंधनों का बार-बार बदलाव चुनावी रिजल्ट को काफी प्रभावित करता है। 2015 में JDU-RJD-कांग्रेस वाले महागठबंधन ने 22 में से 16 सीटों पर कब्जा किया था। NDA को सिर्फ 5 सीटें मिलीं थी। वहीं, 2020 में महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, भाकपा माले) ने 22 में से 19 विधानसभा सीटें जीतीं। 2020 में कांग्रेस 22 में से 5 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 4 सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट चैनपुर पर जमानत जब्त हो गई थी। राहुल क्या साधना चाहेंगेः शाहाबाद में अगड़ा और पिछड़ा दोनों मुखर रहे हैं। यहां जातीय गोलबंदी तेजी से होती है। इस एरिया के दलितों पर माले का प्रभाव है। राहुल गांधी के हाल के बिहार दौरे के भाषणों को देखें तो वह दलितों और OBC-EBC को हक देने की वकालत करते रहे हैं। चुनाव से पहले वह दौरा कर अपने वोटबैंक को एकजुट और गोलबंद करने की कोशिश करेंगे। सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडे बताते हैं, 'ये इलाका कभी NDA का गढ़ था, लेकिन माले,राजद और कांग्रेस के एकजुट होने से जो सामाजिक समीकरण बना है उसमें अब महागठबंधन भारी हो गया है।' 'राहुल इस इलाके से यात्रा शुरू कर अपने कोर इलाके को और मजबूत करना चाहते हैं। पीएम मोदी भी लगातार इन इलाकों में रैली कर रहे हैं। वे इस इलाके में दो रैली कर चुके हैं। अब तीसरी रैली भी उनकी गया में प्रस्तावित है।' मगध में नीतीश के वोटबैंक पर राहुल की नजर मगध में पटना, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, अरवल, नवादा, शेखपुरा और नालंदा जिले आते हैं। इसमें से राहुल गांधी 5 जिलों की 11 विधानसभा सीटों में घूमेंगे। यहां यादव, कुर्मी, कोइरी, दलित (मांझी, रविदास, पासवान समुदाय), मल्लाह और सवर्ण अहम फैक्टर हैं। गया और जहानाबाद में मुस्लिम समुदाय भी महत्वपूर्ण है। मगध में कांग्रेस की स्थितिः यहां यादव और दलितों का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। इन्हें RJD और भाकपा-माले का कोर वोटर माना जाता है। वहीं, कुर्मी और अति पिछड़ा समुदाय (EBC) नीतीश कुमार का आधार वोट बैंक हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन 49 में से 32 सीटों पर जीता था। NDA को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस एरिया की 7 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी थी, जिसमें से उसे सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली। राहुल क्या साधेंगेः मगध क्षेत्र में अगड़े-पिछड़े की राजनीति होती है। पिछड़ा वोट महागठबंधन के साथ ज्यादा रहा है। इस एरिया के कोइरी-कुर्मी और EBC वोटरों के बीच नीतीश कुमार की पैठ है। हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने कुशवाहा कैंडिडेट देकर उस समीकरण को तोड़ दिया था। तीन लोकसभा सीटों पर उसे जीत मिली थी। फिलहाल नीतीश कुमार के बाद JDU के अंदर मगध क्षेत्र में कोई दमदार नेता नहीं है, जो अपने बल-बूते समीकरण को साध सके। यही कारण है कि नीतीश कुमार के बाद EBC वोटरों का बड़ा नेता बनने के लिए सभी पार्टियां लगातार काम कर रही है। राहुल गांधी की नजर भी नीतीश कुमार के EBC वोट बैंक पर ही है। अंग में NDA के गढ़ में सेंधमारी का प्रयास अंग में भागलपुर, बांका, खगड़िया, मुंगेर, जमुई और लखीसराय जिले आते हैं। इसमें से 3 जिले भागलपुर, मुंगेर और लखीसराय के 6 विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी जाएंगे। यहां यादव, कुर्मी, कोइरी, और धानुक प्रभावशाली हैं। वहीं, भागलपुर और मुंगेर जिले में भूमिहार और राजपूत सामाजिक-आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं। खगड़िया और भागलपुर में मुस्लिम वोटर भी रिजल्ट को प्रभावित करते हैं। अंग प्रदेश में कांग्रेस की स्थितिः यादव-मुस्लिम-दलित (MY समीकरण) और EBC समुदायों की बढ़ती जागरूकता ने राजनीति को काफी प्रभावित किया है। भागलपुर दंगे के बाद लालू यादव ने अपनी जमीन मजबूत की थी, लेकिन हाल के कुछ सालों में धानुक वोटरों का नीतीश कुमार के प्रति झुकाव ने उनके सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया है। 2020 विधानसभा चुनाव में इस एरिया की 25 विधानसभा सीटों में महागठबंधन सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गया था। इस एरिया की 9 सीटों पर कांग्रेस लड़ी, जिसमें से सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली। राहुल क्या साधेंगेः इस एरिया में धानुक समाज का संगठन और उनकी मांगें (जैसे आरक्षण और सामाजिक मान्यता) नए सिरे से सर उठा रही है। राहुल गांधी भी खुद को वंचितों को हक देने के हिमायती के तौर पर पेश कर रहे हैं। भागलपुर दंगे के बाद इस एरिया से कांग्रेस का सफाया हो गया। उसे नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। सीनियर जर्नलिस्ट शिवलोचन बताते हैं, अंग वो इलाका है, जहां से कांग्रेस के मुख्यमंत्री चुनाव लड़ते थे। भागलपुर से चुनाव जीतने के बाद ही भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। तब बिहार विधानसभा के अध्यक्ष भी भागलपुर से ही थे। कांग्रेस का ये गढ़ 89 में हुए भागलपुर दंगे के बाद ढह गया।' सीमांचल में ओवैसी के नुकसान को कम करने की कोशिश सीमांचल बिहार का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला एरिया है। किशनगंज में 67.98 फीसदी, अररिया में 42.94 फीसदी, कटिहार में 44.46 फीसदी और पूर्णिया में 38.46 फीसदी मुस्लिम आबादी है। 4 जिले में 24 विधानसभा सीट हैं, जिसमें से 12 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। राहुल गांधी किशनगंज को छोड़कर बाकी के 3 जिलों की 9 विधानसभा क्षेत्रों में घूमेंगे। सीमांचल में कांग्रेस की स्थितिः मुस्लिम समुदाय के अलावा, यादव, दलित, EBC (निषाद, मल्लाह), और सवर्ण (भूमिहार, राजपूत) भी महत्वपूर्ण हैं। पिछली बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने एंट्री की और 5 सीटों पर जीत दर्ज की। इसका खामियाजा महागठबंधन को उठाना पड़ा और 8 सीटों पर सिमट गया। NDA 11 सीटों पर जीता। 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस एरिया में 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। राहुल क्या साधेंगेः महागठबंधन सामाजिक न्याय, बेरोजगारी, और वक्फ संशोधन बिल जैसे मुद्दों को उठाकर मुस्लिम और OBC वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है। राहुल गांधी की पूरी कोशिश है कि वह अपने पुराने वोटरों को एकजुट करें और ओवैसी के नुकसान को कम कर सके। कोसी में जमीन तैयार करने की कोशिश कोसी क्षेत्र (सहरसा, सुपौल, और मधेपुरा जिले) की राजनीति जातीय समीकरणों, गठबंधन की रणनीति और क्षेत्रीय मुद्दों जैसे बाढ़ और आर्थिक पिछड़ापन से प्रभावित है। राहुल गांधी सुपौल में एक दिन घूमेंगे। कोसी क्षेत्र में यादव सबसे प्रभावशाली हैं, विशेषकर मधेपुरा में। मल्लाह कोसी नदी के किनारे बसे हैं। इनके वोटों पर सबकी नजर रहती है। कोसी में कांग्रेस की स्थिति यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण महागठबंधन की ताकत है, जबकि EBC और महादलित वोटों का बंटवारा महागठबंधन और NDA के बीच होता है। धानुक भी एक अहम फैक्टर हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने कोसी की 13 सीटों में से 3 सीटें जीतीं। सहरसा और सुपौल में मुस्लिम आबादी करीब 15 फीसदी है, यह कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में है। कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई। राहुल क्या साधेंगेः इस एरिया में महागठबंधन के पास यादव-मुस्लिम का मजबूत गठजोड़ हैं। एक तरह से देखें तो यही उसकी कमजोरी भी है। जब यह वोटर एग्रेसिव होते हैं तो बाकी के वोटर गोलबंद हो जाते हैं और NDA जीत जाता है। राहुल गांधी अपनी यात्रा से चाहेंगे कि EBC वोट बैंक के कुछ हिस्से को अपने पाले में लाया जा सके, ताकि पुरानी जमीन हासिल हो सके। भूमिहार और राजपूत BJP के पारंपरिक वोटर हैं, लेकिन उनकी आबादी सीमित है। NDA के गढ़ मिथिलांचल में सेंधमारी की कोशिश मिथिलांचल को NDA खासकर BJP का गढ़ माना जाता है। मिथिलांचल के 6 जिलों सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और बेगूसराय में विधानसभा की 46 सीटें हैं। 2020 के चुनाव में 46 में से 31 सीटें NDA ने जीती थीं। 19 सीटों पर BJP और 12 सीटों पर JDU को जीत मिली। महागठबंधन के सिर्फ 15 कैंडिडेट जीते। कांग्रेस की स्थितिः राहुल गांधी मिथिलांचल के 3 जिले मधुबनी, दरभंगा और सीतामढ़ी की 7 विधानसभा सीटों पर घूमेंगे। इन 7 सीटों में से पिछली बार कांग्रेस 2 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन खाता नहीं खोल पाई। राहुल क्या साधेंगेः सीतामढ़ी में माता जानकी का मंदिर बनाकर NDA अपने कोर वोटरों को मंडल के अलावा कमंडल (धर्म) के सहारे साध रहा है। ऐसे में राहुल गांधी यात्रा कर महागठबंधन के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेंगे। तिरहुत- NDA को चुनौती देने की तैयारी राजनीतिक रूप से तिरहुत एरिया में सारण प्रमंडल के 3 जिलों छपरा, सीवान और गोपालगंज को मिला दे तो 7 जिले आते हैं। मुजफ्फरपुर, वैशाली, छपरा, सीवान, गोपालगंज, बेतिया और मोतिहारी। इसमें से वैशाली को छोड़कर बाकी के 6 जिलों में राहुल गांधी घूमेंगे। यहां सवर्ण और OBC-EBC का प्रभाव कमोबेश बराबर दिखता है। मुजफ्फरपुर और वैशाली जिले में ब्राह्मण, भूमिहार, और राजपूत के साथ-साथ यादवों का भी प्रभाव है। कांग्रेस की स्थितिः सवर्णों के साथ-साथ इस एरिया में निषाद, मल्लाह, केवट, और तेली जैसे EBC समुदाय अहम फैक्टर हैं। 2020 में इस एरिया की 64 विधानसभा सीटों में महागठबंधन 24 सीटों पर जीत सका था। इसमें से भी 15 सीटें सारण प्रमंडल से जीती थी। कांग्रेस के प्रदर्शन की जहां तक बात करें, वह 3 सीट जीत पाई थी। राहुल गांधी 6 जिलों की 12 विधानसभा क्षेत्र को कवर करेंगे। राहुल क्या साधेंगेः चंपारण के इलाके में EBC वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। लालू-राूबड़ी शासन काल में यह इलाका काफी प्रभावित रहा है। तब से बड़ी संख्या में EBC भाजपा-JDU को वोट कर रहा है। इसको रोकने के लिए महागठबंधन मुकेश सहनी के रूप में EBC लीडर तैयार कर रहा है। जबकि, कांग्रेस लगातार संगठन से लेकर टिकट बंटवारे में उन्हें तरजीह देने की बातें कह रही है। राहुल गांधी अपनी यात्रा से एक बड़े तबके में अपने प्रति भरोसे जगाने की कोशिश करेंगे। जहां भारत जोड़ो यात्रा की, वहां 5 सीटें जीता महागठबंधन लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2024 में राहुल गांधी ने बिहार में भी 5 दिनों तक भारत जोड़ा यात्रा की थी। इसका फायदा उनको चुनाव में हुआ था। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, औरंगाबाद, सासाराम, कैमूर से गुजरे थे। इसमें से 6 लोकसभा की सीटें आती है, जिसमें से 5 सीटों पर महागठबंधन जीता था।
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